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* श्री वीतरागाय नमः *
अथ समक्त्व सार शतकं
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सम्यक्त्व सूर्योदय भूम्टतेऽह मधिश्रितोऽस्मिप्रणतिसदेह । यतः प्रलीयेत तमोविधात्री भयङ्करासाजगतोऽथरात्रिः ॥१॥
अर्थात्- सम्यक्त्य रूप सूर्य का जहां पर उदय होता है उस उदयाचल पर्वत के लिये मैं (पं० भूरामल) हर समय प्रणाम करने को तत्पर हूँ। जिस सम्यक्त्व के उदय होने से अन्धकार को फैलाने वाली और डर उत्पन्न करने वाली वह मिथ्यात्वरूप रात्रि इस दुनियां पर से यानी प्राणिमात्र के दिल पर से विलकुल विलीन हो जाती है। __यहां पर सम्यक्त्व को सूर्य और जिस आत्मा में वह प्रगट होता है उसे पर्वत बतलाया गया है तथा उस के लिये नमस्कार किया गया है । इस का कारण यह है कि सम्यक्त्व हो जाने पर श्रात्मा में एक प्रकार का अद्भुत सहज प्रकाश प्रगट होता है जिससे यह आत्मा इसके साथ हो रहने वाले अनादि कालीन ढब्यूपन को त्याग कर सहज स्वाभाविक प्रभुत्व