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३२- सम्यक्त्वपराक्रम ( १ )
आदेश नही देते । तुम स्वय जो काम करोगे, विवेकपूर्वक करोगे, दूसरे से ऐसे विवेक की आशा कैसे रखी जा सकती है ? इस प्रकार अपने हाथ से विवेकपूर्वक किये गये काम में एकान्त लाभ ही है । स्वय आलसी बनकर दूसरे से काम कराने में विवेक नही रहता और परिणामस्वरूप हानि होती है ।
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आजकल बिजली द्वारा चलने वाली चक्कियाँ बहुत प्रचलित हो गई हैं और हाथ की चक्कियाँ बन्द होती जा रही है । क्या घर की चक्कियाँ बन्द होने के कारण यह कहा जा सकता है कि आस्रव थोडा हो गया है ? घर की चक्कियाँ बन्द करने से तुम निरास्रवी नही हुए हो परन्तु उलटे महापाप में पड गये हो । घर की चक्की और विजली की चक्की का अन्तर देखोगे तो अवश्य मालूम हो जायेगा. कि तुम किस प्रकार महापाप मे पड गये हो । विचार करोगे तो हाथ चक्की ओर बिजली की चक्की में राई जौर पहाड़ जितना अन्तर प्रतीत होगा। बिजली से चलने वाली चक्की से व्यवहार और निश्चय - दोनो की हानि हुई है और साथ ही साथ स्वास्थ्य की भी हानि हुई है और हो रही है पुराने लोग मानते है कि डाकिनी लग जाती है और जिस पर उसकी नजर पड जाती है उसका वह सत्व चूस लेती है । डाकिनी की यह बात तो गलत भी हो सकती है परन्तु बिजली से चलने वाली चक्की तो डाकिनी से भी बढकर है । वह अनाज का सत्व चूस लेती है यह तो सभी जानते हैं | बिजली की चक्की से पीसा हुआ आटा कितना ज्यादा गरम होता है, यह देखने पर विदित होगा कि आटे का सत्व भस्म हों गया है ।
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