________________
१०६-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
फिर कामना करके फल की कीमत घटाने से क्या लाभ है ?
मान लीजिये आपने एक रत्नजटित कीमती अगूठी पहनी है । यह अगूठी पहन कर आप शाक लेने के लिए शाक-बाजार मे गये । शाक बेचने वाले ने तुमसे कहाभाई, यह अगूठी मुझे दे दो । इसके बदले सेर दो सेर शाक अधिक दे दूँगा । तो क्या आप दो सेर शाक के बदले अपनी कीमती अगूठी उसे दे देगे ? यह ठीक है कि आपको गाक की आवश्यकता है, फिर भी कीमती अगूठी देकर आप शाक नही लेगे । कुछ आगे चलकर आप मिठाई वाले की दुकान पर गए । मिठाई वाला भी आपसे कहने लगा-मैं आपको सेर-दो सेर अधिक मिठाई दूगा पर अगूठी मुझे दे दो। तो भी क्या आप दे देगे? इसी प्रकार आप कपडे की दुकान पर गये । दुकानदार ने कहा- तुम्हे जो कपडा पसन्द हो, अधिक ले लो, लेकिन अपनी अगूठी मुझे दे दो। तो क्या आप अगूठी दे देगे ? आपको इन सभी चीजो की आवश्यकता है फिर भी रत्न की अगूठी आप नही देगे । वह अगूठी तो किसी जौहरी को ही दोगे जो रत्न की पूरी-पूरी कीमत चुका दे । ऐसा करने मे व्यावहारिक बुद्धिमत्ता समझी जाती है । कम कीमत मे अगूठी दे देना वुद्धिमत्ता नही वरन् मूर्खता समझी जाती है।
इस व्यावहारिक उदाहरण को आप समझ गये होगे। धर्म के विषय मे भी ऐसा ही समझिए । धर्म एक बहुमूल्य रत्न है । इस रत्न के बदले मे ससार की तुच्छ वस्तु रूपी शाक-भाजी खरीदी जाये तो क्या ऐसा करना ठीक होगा? इस धर्म-रत्न को योगी कीमत मे न वेचोगे तो फिर आपको किसी भी सासारिक वस्तु की कमी न रह जायेगी। धर्म