________________
दुसरा बोल
निर्वेद जिसके अन्त करण मे सवेग जागृत हो जाता है, वह वचनवीर ही नहीं रहता, वरन् अपने विचारो को मूर्त रूप देकर कार्यवीर बनता है । वास्तव में वही सच्चा वीर पुरुष है जो कहने के अनुसार कर दिखलाता है मुंह से कह देने मात्र से कोई लाभ नहीं हो सकता । अच्छे कार्य को जीवन में अवतरित करने से ही आत्मा को लाभ पहुँचता है
अतएव जिसमे सवेग की जागृति हुई होगी वह वचनवीर ही .. नही रहेगा किन्तु अपन वचन के अनुसार कार्य करके बतलाएगा। . भगवान कहते है-- मोक्ष को अभिल पा उत्पन्न होने पर सवेग पैदा होगा और सवेग पैदा होने पर निर्वेद अर्थात विषयो के प्रति उदासीनता उत्पन्न होगी। अतएव अव निर्वेद के विषय में विचार किया जाता है ।
मूल पाठ प्रश्न-निन्वेएणं भते ! जीवे कि जणयई ?
उत्तर-निवेएणं दिव्वमाणुसतेरिच्छिएसु कामभोगेसु निवेयं हवमागच्छइ, सम्वविसएसु विरज्जइ, सम्वविसएसु विरज्जमाणे प्रारंभपरिच्चाय करेई, प्रारभपरिच्चायं करमाणे संसारमग्ग वोच्छिन्दइ, सिद्धिमग्गपडिवन्ने भवइ ॥२॥