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दूसरा बोल-१५७
देती है-जो चार पैसे देता है उसी को सौंप देती है। यह कैसी मोहदशा है ! अगर इसने अपना शरीर परमात्मा के पवित्र चरणो मे अर्पण कर दिया होता और धर्मध्यान किया होता तो क्या इसका कल्याण न हो गया होता ?' इस प्रकार विचार कर ज्ञानी पुरुष अपने ज्ञान की वृद्धि करते है । किन्तु अज्ञानी पुरुष वेश्या को देखकर तरह-तरह के कुत्सित और मलीन विचारो मे डूब जाते हैं और पाप का उपार्जन करते है । इस प्रकार सासारिक पदार्थ ज्ञानियो का ज्ञान बढाते है और अज्ञानियो का अज्ञान बढाते है ।
ज्ञानी पुरुष पदार्थ का मूल खोजते है। एक उपदेशक ने तो यहाँ तक कह डाला है कि अगर 'स्त्रियो को देखकर हम अपने हृदय में उठने वाले खराब विचारो को नही रोक सकते तो ऐसी स्थिति में अपनी आँखो को फोड डालना ही हमारे लिये श्रेयस्कर है।' इस उपदेश के अनुसार घटित हुई घटना भी सुनी जाती है । कहा जाता है कि सूरदास ने इसी विचार से अपनी आँखे फोड ली थी। इस प्रकार किसी भी वस्तु के विषय मे अगर ज्ञानपूर्वक विचार करने की क्षमता न हो तो उस वस्तु की ओर दृष्टि न देना ही उचित है। ऐसा करते-करते मोह कम हो जायेगा। वीतराग भगवान् किस चीज को नही देखते ? उनकी दृष्टि मे सभी पदार्थ प्रतिबिम्बित होते हैं । इस विचार को सामने रखकर किसी भी पदार्थ को देखकर वीतराग का ध्य न करना चाहिये और व्यवहार के लिये उन पदार्थों की ओर से आँख-कान फेर लेना चाहिये ।
श्री ज्ञातासूत्र में कहा है- सुकुमालिका ने ग्वालिका सती से कहा कि मैं बड़ी ही दुखिनी हूं, क्योकि मुझे कोई