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चौथा बोल-२२३
इनके त, नियम, मंयम आदि गुण देखना चाहता हूं। जिसके द्वारा आत्मा सयम मे रखा जा सके वह तप कहलाता है । मर्यादा का पालन करना नियम है । आत्मा को वश में रखना सयम है और आत्मा की वीर्यशक्ति को प्रकट करना ब्रह्मचर्य है ।
इस प्रकार तप, नियम आदि गुणो को देखने वाले से किसी ने पूछा-क्या तुम तप, नियम आदि गुण देख रहे हो? तब देखने वाले ने कहा हा, पहले मैं साधु के तप आदि गुण देखता हूँ, तद न्तर उन्हे गुरु के रूप में स्वीकार करता है । यह सुनकर प्रश्न करने वाला बोला-इम प्रकार सर्वप्रथम गुणो की परीक्षा करने वाला कभी ठगा नहीं जा सकेगा।
इस सूत्रपाठ से यह बात समझनी चाहिए कि केवल नाटक के खेल की भाति ऊिपर से ज्ञान का ढोग बतलाने वाला, किन्तु स्वय ज्ञान के अनुसार आचरण न करने वाला गुरुपद का अधिकारी नही है । जो दूसरो को तो ज्ञान की बात बतलाता है, किन्तु स्वय तदनुसार व्यवहार नही करता, उसे आडम्बरी समझना चाहिए । यह बात दूसरी है कि म्वय वीतराग न होते हुए भी वीतराग का स्वरूप बतलावे, किन्तु ऐसी स्थिति मे उसे स्पष्ट कर देना चाहिए कि मैं अभी वीतराग नही हुआ हू, मै सिर्फ वीतराग के मार्ग का पथिक हूँ । इस प्रकार वीतराग-मार्ग का पथिक ( मुमुक्षु ) होकर वीतराग का मार्ग बतलाना योग्य ही है । परन्तु जो स्वय उस मार्ग का पथिक नही बनता और सिर्फ दूसरो को ही मार्ग बतलाता है, वह आडम्बरी है । आडम्बर करने