________________
चौथा बोल-२४५
किया । दूसरा नम्बर पजाब का आया ।
पजाब मे बादशाह ने यही तरीका अख्तियार किया। लोग त्राहि-त्राहि पुकारने लगे। इस दुर्दशा के समय क्या करना चाहिए, यह विचार करने के लिए बहुत से लोग तेगबहादुर के पास अ ये और कहने लगे 'बादशाह ने सारे प्रान्त मे यह जुल्म अ,रम्भ कर दिया है । अब क्या करना उचित है ?' गुरु तेगबहादुर ने कहा - ' तुम लोग बादशाह के पास यह सन्देश भेज दो कि हमारा गुरु तेगबहादुर मुसलमान बन जायेगा ता हम सब भी मुसलमान हो जाएगे। कदाचित् वह मुसलमान न वने तो हन भो नहीं बनेंगे । आप तेगबहादुर को पकडकर उनसे पहले निबट लीजिए।'
तेगबहादुर की बात सुनकर लोग कहने लगे -- यह सन्देश भेजने से तो आपके ऊपर आपदा आ पडेगो । मगर बहादुर तेगबहादुर ने कहा -' सिर पर आपत्ति आ पडे या प्राण चले जाएं, तो भी परवाह नही । कष्ट सहन किये बिना धर्म की रक्षा कैसे हो सकती है?'
__ अन्तत लोगो ने उपर्युक्त सन्देश बादशाह के पास भेज दिया । बादशाह ने तेगबह दुर को बुला भेजा। वह जाने को तैयार हुए । उनके शिष्यो ने कहा- आप हमे यही छोडकर कैसे जा सकते है ? बादशाह आपके प्राण ले लेगा।' तेगबहादुर ने उत्तर दिया - यह तो मैं भी जानता है । लेकिन, मेरे प्राण देने से औरो की रक्षा होती है, अगर में अपने प्राण बचाता है तो दूसरो को रक्षा नही हो सकती। ऐसी स्थिति में अपने प्राण देना ही मेरे लिए उचित है । मेरे बलिदान से दूसरों की रक्षा होगी, यही नहीं वरन्