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२१४-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
पर भी दुखी का दुःख मिटे या न मिटे, पर तुम्हारा दुख तो मिटेगा ही । जो बहुत मे रोगियो का रोग मिटाता है, वह बडा डाक्टर माना जाता है। इसी प्रकार जो बहुतसे दुखियो का दुख मिटाता है वह बडा दयालु कहलाता है और जो बडा दयालु हाता है वह दूसरो पर अधिक करुणा करके अपने हृदय 'का अधिक दुख मिटाता है ।
किसी भी दुखी प्राणी की घृणा करना उचित नही। जिसके हृदय में करुणा-भावना होती है वह किसी से घणा नहीं करता । आजकल करुणाभावना की कमी के कारण दुखी जीवो के प्रति घृणा की जातो है, ऐसा देखा जाता है। आज शहरो मे बसने वाले लोग यह सोचते हैं कि शहर मे तो दुखी लोग बहुत है, किस-किस का दुख दूर किया जाये ? गाव मे तो कोई-कोई दुखी होता है। वहा किसी का दुख दूर किया जा सकता है। मगर शहर मे किसकिस का दुख दूर किया जाये । इस प्रकार का विचार करना नागरिक जीवन का दुरुपयोग करने के समान है। नागरिक जीवन का सदुपयोग तो तभी कहा जा सकता है जब दुखी को देखकर, उसके प्रति करुणाभाव लाया जाये और उसका दुःख दूर करने का प्रयत्न किया जाये।
गुणीजनो को देखकर हृदय मे प्रमोदभावना लाना चाहिए, प्रसन्नता अनुभव करना चाहिए । तनिक भी ऐसा विचार नही करना चाहिए कि यह मनुष्य इतना सद्गुणी क्यो है ? इसे इतना यश क्यो मिल रहा है ? लोगो में इसका इतना सन्मान क्यो हो रहा है ? गुणीजनो के प्रति सद्भावना न प्रकट करना अपने लिए दु ख उत्पन्न करने के