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८६-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
वान् की वाणी को अभ्रान्त समझकर उस पर श्रद्धा, प्रतीति तथा रुचि करो और विचार करो कि भगवान् का हमारे ऊपर कितना करुणाभाव है कि उन्होने हमारे कल्याण के लिए यह वचन कहे हैं । भगवान् अपना निज का कल्याण तो बोले विना भी कर सकते थे, फिर भी हमारे कल्याण के लिए ही उन्होने यह सिद्धान्तवाणी कही है। अतएव भगवद्वाणी पर हमे विश्वास करना ही चाहिए ।
कदाचित कोई कहने लगे कि आपका कहना सही है मगर ससार मे चमत्कार के बिना नमस्कार नही देखा जाता। अतएव हमे कोई चमत्कार दिखाई देना चाहिए। इस कथन के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि शास्त्रीय चमत्कार वतलाया जाये तो उपदेश ही है और अगर व्यावहारिक चमत्कार बतलाया जाये तो वह भी तभी माना जायेगा जवकि वह बुद्धि मे उतर सके । अगर बुद्धि मे न उतरा तो वह भी अमान्य ही ठहरेगा । यह बुद्धिवाद का जमाना है। यह जमाना विचित्र है । जो लोग शास्त्र सुनने आते हैं उनमे से भी कुछ लोग ही सचमुच शास्त्र सुनने आते है और कुछ लोग यह सोचकर आते हैं कि वहाँ जाने से हमारे अवगुण दव जाएंगे और हमारी गणना धर्मात्माओ मे होने लगेगी। यह बात इम खोटे जमाने से ही नहीं वरन् भगवान महावीर के समय से ही चली आती है। भगवान् के समवसरण में आने वाले देवो मे भी कितनेक देव भगवान के दर्शन करने आते थे और कितने ही देव दूसरे अभिप्राय से पाया करते थे । दूसरे अभिप्राय से आने वाले देवो में कुछ देव तो इसलिए आते थे कि भगवान के पास जाकर अपनी गकाओं का समाधान कर लेगे, कुछ देव अपने मित्रो का साथ देने
जाता है। भगवान् महा
आने वाले देवो