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पहला बोल-६७
भगवान् कहते हैं परलोक में कष्ट न हो, इसके लिए संवेग बढाओ । सवेग किस प्रकार बढाया जा सकता है और उसे बढाने के लिए क्या करना चाहिए, इस विषय मे एक महात्मा ने कहा हैतथ्ये धर्म ध्वस्तहिंसाप्रधाने,
देवे रागद्वेषमोहादिमुक्ते। साधी सर्वग्रन्थसन्दर्भहीने,
सवेगोऽसौ निश्चलो योऽनुरागः ॥ अर्थात्-अहिंसाप्रधान सत्य धर्म पर, राग, द्वेष, मोह आदि विकारो से रहित देव पर और सब प्रकार के परिग्रह से रहित साधु पर निश्चल अनुराग रखना सवेग है ।
इस कथन से स्पष्ट है कि सवेग वढाने के लिए सब से पहले धम के प्रति अनुराग बढाना आवश्यक है । लेकिन
आजकल तो धर्म के नाम पर बहुत ठगी चल रही है और __ यह भी कहा जाता है कि कुछ ठगी के उपाय भी धर्म मे छिपे हुए हैं । इस प्रकार धर्म के विषय मे बहुत से लोग भ्रम मे पड़े हुए हैं । धर्म के नाम पर कुछ लोग ठगे भी गये हैं । इसी कारण कुछ लोग धर्म से दूर रहना चाहते है जिमसे कि ठगाई से बच सकें । धर्म के नाम पर ठगाई करने वाला व्यक्ति जिस धर्म का अनुयायी होता है अथवा जिस धर्म के नाम पर ठगाई करता है, उस धर्म को लोग वैसा ही समझने लगते हैं । अगर कोई मुंहपत्ती वाघ कर पाप करता है तो यही समझा जाता है कि मुंहपत्ती वाँधने वाले ऐसा ही करते है । इस तरह ठगो की करतूत से धर्म भी बदनाम होता है। कवि तुलसीदासजी ने धर्म के नाम पर ठगने वालो का अच्छा चित्र खीचा है