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पहला बोल - १०१
ऐसा मानता है, उसी को मोक्ष की इच्छा हो सकती है । संसार को बधन ही न समझने वाला मोक्ष की इच्छा ही क्या करेगा ?
मोक्ष की अभिलापा मे इस अध्ययन में कथित सभी तत्त्वो का समावेश हो जाता है । यद्यपि सव तत्त्वो पर अलग-अलग चर्चा की गई है किन्तु सबका सार 'मोक्ष की अभिलाषा होना' इतना ही है । मोक्ष की अभिलाषा उसी के अन्तःकरण मे जागेगी जिसे ससार कडुवा लगेगा और जो १ ससार को बघन समझेगा ।
सवेग से क्या फल मिलता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा-सवेग से अनुत्तर धर्म पर श्रद्धा उत्पन्न
होती है ।
धर्मश्रद्धा मोक्षप्राप्ति का एक साधन है और यह साधन तभी प्राप्त होता है जब मोक्ष की आकाक्षा उत्पन्न होती है | जिसके हृदय में सवेग के साथ धर्मश्रद्धा होती है वह कदापि धर्म से विचलित नही हो सकता, चाहे कोई कितना ही कष्ट क्यो न पहुँचाए । ऐसे दृढ धर्मियो के उदाहरण शास्त्र के पानी मे उपलब्ध होते हैं ।
सवेग से क्या फल मिलता है ? इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने यह भी कहा है कि सवेग से धर्मश्रद्धा और धर्मश्रद्धा से सवेग उत्पन्न होता है । इस प्रकार सवेग और धर्मश्रद्धा दोनो एक दूसरे के सहारे टिके हुए हैं । दोनो मे अविनाभाव सम्बन्ध है |
जिस पुरुष को दु.खो से मुक्त होने की इच्छा होगी वह थर्मश्रद्धा द्वारा सवेग बढाएगा और सवेग द्वारा धर्मश्रद्धा