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८४-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
आज बहत-से लोग आरम्भगर दिखाई देते है । लोग किसी कार्य को प्रारम्भ तो कर देते हैं किन्तु उसे पूरा किये बिना ही छोड बैठते हैं । ऐसे आरम्भगूर लोग किसी कार्य को सम्पन्न नही कर सकते । महापुरुष प्रथम तो बिना विचारे किसी कार्य को हाथ में लेते ही नहीं है और जिस काम मे हाथ डालते है उसे भयकर से भयकर कष्ट आने पर भी अधूरा नहीं छोडते ।।
इस प्रकार सिद्धान्तवाणी का मर्यादानुसार पालन करके पारगत होना चाहिए और फिर 'यह वाणी जैसी कही जाती है वैसी ही है। मैं इस वाणी का पालन करके पार नही पहुँच सकता था किन्तु भगवान् की कृपा से पार पहुँचा ह' इस प्रकार कहकर भगवद्वाणी का सकीर्तन करना चाहिये। भगवद्वाणी को आचरण मे उतारते किसी प्रकार का दोप हा हो तो उसका सशोधन करना चाहिए, किन्तु दूसरे पर दोपारोपण नही करना चाहिए । तत्पश्चात 'आज्ञा गुरूणा खलु वारणीया' इस कथन के अनुसार गुरुओ की आज्ञा को शिरोधार्य समझ कर भगवान् की वाणी का आज्ञानुसार पालन करना चाहिए ।
इस प्रकार इस सम्यक्त्वपराक्रम अध्ययन पर श्रद्धा, प्रतीति, रुचि, स्पर्शना करने से उसका पालन करने से, पार पहुँचने से, सकीर्तन करने से, सशोधन करने से, आराधना करने से और आज्ञानुसार अनुपालन करने से अनेक जीव सिद्ध, वुद्ध और मुक्त हुए हैं, होते है और होगे तथा सब दुःखो का अन्त करके निर्वाण को प्राप्त हुए है, होते है और होगे।
सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी से इस प्रकारं कहा, परन्तु