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अध्ययन का आरम्भ - ८६
भगवान् की वाणी द्वारा एक बार जिन दुःखो का अन्त किया
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जाता है, वे दुख फिर कभी नहीं सताते वान् की इस वाणी द्वारा दुःख कषाय की भवाकुर को समूल नष्ट कर डालते हैं ।
भव्य जीव भगअग्नि को तथा
सामान्य रूप से कहा गया है कि इस अध्ययन पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि धारण करने से कल्याण होता है, किन्तु अब यह विचार करना है कि इस अध्ययन में क्या कथन किया गया है ? इसके पश्चात् अध्ययन मे कही प्रत्येक बात के विषय मे पृथक्-पृथक् विचार किया जायेगा ।
सुधर्मास्वामी सम्यक्त्वपराक्रम का अधिकार बतलाते हुए जम्बूस्वामी से इस प्रकार कहते हैं ।
तस्स णं प्रथमट्ठे एवमाहिज्जइ, तंजहा -
(१) सवेगे ( २ ) निव्वेए ( ३ ) धम्मसद्धा (४) गुरुसाहम्मियसुस्सूसणया ( ५ ) आलोयणया ( ६ ) निदणया ( ७ ) गरहणया ( ८ ) समाइए ( 8 ) चउवीसत्थए (१०) वदणे (११) पडिक्कमणे (१२) काउसग्गे (१३) पच्चक्खाणे (१४) थवथुइमगले (१५) कालपडिलेहणया (१६) पाय च्छित्त करणे (१७) खमावणे (१८) सज्झाए (१६) वायणया ( २० ) पडिपुच्छणया (२१) पडियट्टणया (२२) अणुप्पेहा ( २३ ) घम्मका (२४) सुभस्स आराहणया (२५) एगग्गमणसनिवेसणया (२६) सजमे (२७) तवे ( २८ ) वोदाणे ( २९ ) सुहसाए (३०) अप्पविद्धया (३१) विवित्तसयणासणसेवगया (३२) विणियट्टणया ( ३३ ) सभोगपच्चक्खाणे (३४) उवहिपच्चक्खाणे (३५) आहारपच्चक्खाणे ( ३६ ) कसायपच्चक्खाणे ( ३७ ) जोगपच्चक्खाणे (३८) सरीरपच्चक्खाणे
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