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अध्ययन का प्रारम्भ - ६१
अनुसार ऊपर आ गया । इस प्रकार तू बा यद्यपि ऊपर आ गया है किन्तु मिट्टी के बन्धन से मुक्त तो वह पानी के नीचे ही हो गया था । अगर पानी के नीचे ही वह बन्धनमुक्त न हुआ होता तो ऊपर आ ही नही सकता था । इस एकदेशीय उदाहरण के अनुसार आत्मा भी कर्म के लेप से बद्ध है । जब आत्मा का यह कर्मलेप हट जाता है - प्रात्मा पूर्णरूप से निष्कर्म कर्ममुक्त हो जाता है तभी वह सिद्धिस्थान प्राप्त करता है । आत्मा यहाँ मुक्त न हुआ होता तो सिद्धिस्थान मे जा ही नही सकता था ।
जीव के लिए यह शरीर आदि बन्धन रूप है 1 अनन्त केवलज्ञान का प्रकट होना बन्धन से मुक्त होना ही है । फिर भले ही शरीर मे वास हो तो भी आत्मा मुक्त है । सिद्धान्त इस कथन का समर्थन करता है । शास्त्र मे कहा है - ' एव सिद्धा वदन्ति परमाणु ' अर्थात् सिद्ध भगवान् परमाणु के विषय मे ऐसा कहते है । यहाँ यह विचारणीय है कि सिद्धगति मे गये हुए सिद्ध भगवान् तो बोलते नही हैं, फिर भी यहाँ कहा गया है कि सिद्ध कहते हैं । इससे यह वात स्पष्ट हो जाती है कि यहाँ तेरहवें गुणस्थानवर्त्ती अरिहन्त भगवान् को ही सिद्ध कहा है । इस प्रकार इस ससार मे ही मोक्ष है और केवलज्ञान प्रकट हो जाने पर आत्मा शरीर मे रहता हुआ भी सिद्ध ही है ।
साराश यह है कि जिनमे पूर्वोक्त छह बाते पाई जाती है, वह भगवान् है । आपने यह सुन लिया कि भगवान् कैसे होते हैं । मगर विचार करो कि यह सुनकर आप क्या लाभ उठाना चाहते हैं ? भगवान् के यह गुण सुनकर आपको निश्चय करना चाहिए और समझना चाहिए कि अगर आत्मा,