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अध्ययन का प्रारम्भ-६३
तुम्हे जो समय होता है और वकील को जो समय होता है, उसमे कुछ अन्तर है या नही ? जब वकील के और साधारण आदमी के समय में भी अन्तर होता है तो भगवान् के आयुष्य मे और साधारण मनुष्य के आयुष्य मे कितना अधिक अन्तर न होगा ? इन्द्र आदि देवगण जिन भगवान् को नमस्कार करते है । उन भगवान् ने जो वाणी सुधर्मास्वामी को सुनाई थी और सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी को सुनाई थी, वही सिद्धान्त-वाणी आज हम लोग सुन रहे है। इस सिद्धान्त-वाणी का महत्व और अपना सौभाग्य कितना महान् है, यह विचार करना चाहिए ।।
सुधर्मास्वामी कहते है-'हे जम्बू ! भगवान महावीर ने सुनाया है और मैंने भगवान् से सुना है।' क्या सुना है, इस सम्बन्ध मे वे कहते हैं कि 'यह'-'इदम्' यह कथन अगुलीनिर्देश के साथ किया गया है। जो वस्तु सामने होती है उसी के विपय मे ऐसा कथन किया जाता है । 'खलु का अर्थ निश्चय है' अतएव इस कथन का अर्थ यह हुआ कि'हे जम्बू | मैंने निश्चय रूप से भगवान् से सुना है अर्थात यह सम्यक्त्वपराक्रम नामक अध्ययन मैंने निश्चय ही भगवान् से सुना है ।'
पहले कहा जा चुका है कि इस अध्ययन के तीन नाम हैं, परन्तु सूत्र मे यह अध्ययन 'सम्यक्त्वपराक्रम' नाम से ही कहा गया है । जिस अध्ययन मे सम्यक्त्व के लिए किये जाने वाले पराक्रम का विचार किया गया है, वह 'सम्यक्त्वपराक्रम-अध्ययन' कहलाता है ।
ससार में सभी जन सम्यग्दृष्टि रहना चाहते हैं । मिथ्यादष्टि कोई नहीं रहना चाहता । किसी को मिथ्यावृष्टि कहा