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अध्ययन का प्रारम्भ-७३
इसका क्या कारण है ? क्या दयाधर्मी होने के कारण तुम्हारा पारा ऊँचा चढ जाता है ? हाथी के मडल में तो अनेक जीव आ घुसे थे और उन्होंने थोडी-सी भी जगह खाली नही रहने दी थी । एक खरगोश को कही जगह नहीं मिल रही थी और वह परेशान होकर कष्ट पा रहा था । इतने मे ही हाथी ने अपना शरीर खुजलाने के लिये पैर ऊपर उठाया । पैर ऊपर होते ही खाली हुई जगह मे खरगोश वैठ गया। हाथी चाहता तो खरगोश के ऊपर पैर रख सकता था और उसे मसल सकता था, पर खरगोश पर दयाभाव लाकर उसने पैर नीचा नही किया । हाथी भलीभाति समझता था कि वास्तव मे सच्चा घर वही है जहाँ किसी दुखी जीव को, थोडे समय के लिये ही सही, विश्राम मिल सकता हो । जिस घर मे आया कोई भी अतिथि दु.ख न पाये वही सच्चा घर है । हाथी को तो ऐसा उदार विचार आया, पर तुम्हे ऐसा उदार विचार आता है या नही ? नीतिशास्त्र में कहा है
अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात् प्रतिनिवर्तते । स तस्मै दुष्कृतं, दत्वा पुण्यमादाय गच्छति ॥
अर्थात्-जिसके घर आया हुआ अतिथि निराश होकर लौटता है, उसे अतिथि का पाप लगता है और अतिथि पाप देकर उस घर का पुण्य लेकर चला जाता है ।
हाथी सोच सकता था कि यह सब पशु मेरे मडल मे-मेरे घर मे क्यो आये हैं ? वह खरगोश पर क्रुद्ध होकर उसे कुचत भी सकता था; मगर न जाने प्रकृति को कौनसी अनूठी शिक्षा से वह बीस पहर तक एक पैर ऊँचा किये ही खडा रहा। हाथी जैसे स्थूल शरीर वाले प्राणी के लिये इतने