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अध्ययन का आरम्भ-६६
द्वार पर आता है तब इस सिद्धान्त का पालन कितना होता है, यह देखना चाहिए । तुम्हे सम्यक्त्व प्राप्त हुआ होगा तो तुम उस भिखारी या दुखी मनुष्य को भी अपना मित्र मानोगे और उसे सुखी बनाने का प्रयत्न करोगे । इसके विपरीत अगर तुम अपने सगे-सम्बन्धी की रक्षा के लिए दौड़े जाओ परन्तु अपरिचित गरीब की रक्षा के लिए प्रयत्न न करो तो कहा जायेगा कि अभी तुम्हारे अन्त. करण मे सच्चा करुणाभाव उत्पन्न नही हुआ है । तुम्हारे हृदय में सम्यक्त्व होगा तो सब की रक्षा करने का दयाभाव भी अवश्य होगा । यह सम्भव नही कि सम्यक्त्व हो किन्तु दयाभाव न हो । अगर कोई कहे कि सोना तो है मगर पीला नही है तो उससे यही कहा जायेगा कि जो ऐसा है वह सच्चा सोना ही नही है । इसी प्रकार जिसमे चिकनापन नही है वह घी ही नही है । वह और कोई चीज होगी । इसी प्रकारं हृदय में दयाभाव न हो तो यही कहा जायेगा कि अभी सम्यक्त्व प्राप्त नही हुआ है । जिसमे सम्यक्त्व होगा उसमे दयाभाव अवश्य होगा । सम्यक्त्व के साथ दयाभाव का अविनाभावी - सबध है । इसी कारण सन्त पुरुष ऐसा उपदेश देते हैं कि-करिये भवि प्राणी धर्म सुखों की खान है, दया धर्म का मूल कहा है उसका भेद सुनावे,
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अनुकंपा जिस दिल में प्रगटे माया ममता जावे रे । करिये० । क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, सभी लोग दया को श्रेष्ठ मानते है । सभी लोग दयाधर्म- दयाधर्म चिल्लाते है । दया के विषय मे किसी का मतभेद नही है । नीतिग्रन्थो में कहा है
'परस्पर विवदमानानां धर्मग्रंथानामहिंसा परमो धर्म
इत्यत्रैकवाक्यता'
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