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५८-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
करते हैं तो छत्र आकाश मे चलता रहता है । परन्तु जब भगवान् स्थित होते है तो छत्र भगवान् के ऊपर छाया किये रहता है ।
कहा जा सकता है कि भगवान को इन सब चीजों से क्या प्रयोजन है ? इसका उत्तर यह है कि इन चीजो के लिए अगर भगवान् की इच्छा होती तो भगवान के भगवान्पन मे दूषण आता । भगवान् स्वय इसकी इच्छा नही करते । यह सब चीजे तो उनकी पूर्वकृत वीस बोलो की
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*अरिहंतसिद्धपवयण-गुरुथेरबहुस्सुए तवस्सीसु । वच्छलया य तेसि अभिक्खणणाणोवोगे य । दसणविणयावस्सए य सीलव्वए य निरअइयारे । खणलव-तवच्चियाए वेयावच्च समाहीयं ।। अपुवणाणगहणे सुयभत्ती पवयणप्पभावणया । एएहि कारणेहि तित्थयरत्तं लहइ जीवो ॥
भावार्थ- (१) अरिहत (२) सिद्ध (३) प्रवचन (गास्त्र) (४) गुरु (५) स्थविर (६) बहुसूत्री (पडित) (७) तपस्वी-इन सातो का गुणानुवाद करने से (८) ज्ञान मे सतत उपयोग लगाने से (६) सम्यक्त्व का निर्दोष पालन करने से (१०) गुरु आदि पूज्य पुरुषो का विनय करने, देवसी, रायसी, पाक्षिक, चौमासी तथा सवत्सरी, यह पाँचो प्रतिक्रमण निरन्तर करने से (१२) शील-ब्रह्मचर्य आदि, व्रतो-प्रत्याख्यानो का निरतिचार पालन करने से (१३) वैराग्यवत्ति धारण करने से (१४) बाह्य और आभ्यन्तर तप करने से (१५) सुपात्र दान से (१६) गुरु, रोगी, तपम्वी, वृद्ध तथा नवदीक्षित मुनि की सेवा करने से (१७)