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अध्ययन का प्रारम्भ - ५५
अशोकवृक्ष. सुरपुष्पवृष्टिः, दिव्यध्वनिश्चामरमासनञ्च । भामण्डल दुन्दुभिरातपत्र, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥
भगवान् के आठ प्रातिहार्यों मे पहला अशोकवृक्ष है । अशोकवृक्ष भगवान् के ऊपर छाया किये रहता है । भगवान् जब चलते हैं तो आकाश मे रह कर अशोकवृक्ष उन पर छाया करता है । भगवान् जब किसी स्थान पर स्थित हो जाते हैं तो उनके पीछे जमीन पर स्थित रहकर छाया करता है ।
दूसरा प्रातिहार्य यह है कि देव भगवान् के पास अचित्त पुप्पो की वर्षा करते है ।
तीसरा प्रातिहार्य भगवान् की दिव्य वाणी है । चौथा प्रातिहार्य चामरो का दुरना है । भगवान् के ऊपर आप ही आप चामर दुरते रहते हैं । भगवान् के चलने पर श्राकाश में स्थित होकर चामर दुरते हैं । भगवान् जब कहीं स्थित होते है तब जमीन पर स्थित होकर चामर दुरते है ।
पाँचवाँ प्रातिहार्य भगवान् जब चलते है तब उनके साथ आकाश मे सिहासन भी चलता है और जहाँ भगवान् विराजते है, वहाँ सिंहासन भी स्थित हो जाता है और उस सिहासन पर भगवान् विराजते है; ऐसा जान पडता है ।
छठा प्रातिहार्य भगवान् के मुख कमल के आस-पास प्रभामंडल रहता है, जिससे भगवान् का तेज अत्यन्त वढ जाता है और भगवान् का दर्शन होते ही दर्शनकर्त्ता प्रभावित हो जाता है । आजकल के वैज्ञानिको का भी कथन है कि विशिष्ट पुरुषों के मुख के आसपास प्रभामंडल रहता है । प्रभामंडल उस विशिष्ट पुरुष की विशिष्टता के अनुसार ही प्रभावपूर्ण
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