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३४-सम्यक्त्वपराक्रम (१)
दीवान ने कहा- 'उस गाँव में तो हमारा भाई भी रहता है । वहाँ वैद मुहता का घर है न ? दोवान का यह प्रश्न सुनकर घी-विक्रेता कुछ लज्जित हुआ और कहने लगाआप इतने बड़े आदमी होकर भी हमे याद रखते है, यह बडे ही आनन्द को बात है। हिन्दूसिंहजी समझ गये कि यह घी-विक्रेता भी वैद मुहता गोत्र का ही है । तब दोवान ने उससे कहा-'अच्छा भाई, आओ थोडा भोजन कर लो ।' घी वाला उनके साथ में भोजन करने मे सक्रोच करने लगा, पर उन्होने कहा- 'अरे भाई, इसमें लजाने की क्या वात है ? तुम तो मेरे भाई हो ।' आखिर दोनो ने एक ही थाल मे भोजन किया और दीवान ने आग्रह करके उसे वढियाबढिया भोजन जिमाया ।
दीवान के इस कार्य से उसका महत्व घटा या वढा ? सुना जाता है कि यहाँ (जामनगर में) अपने सहधर्मी भाइयो के साथ भेदभाव रखा जाता है। सहधर्मी भाइयो मे भेद डालने वाले किसी भी विधान को स्वीकार करना किस प्रकार उचित कहा जा सकता है ? खेती करने वाले गरीब सहधर्मी भाइयो के साथ इस तरह का भेदभाव रखा जाता है परन्तु उनके द्वारा उत्पन्न किये अनाज के साथ कोई भेदभाव नही किया जाता | गरीब भाइयो द्वारा उत्पन्न किया अनाज खाना छोड दो तो पता चलेगा कि उनके प्रति भेदभाव रखने का क्या नतीजा होता है ! आज दूसरे लोग तो अस्पृश्यो को भी स्पृश्य बनाते जा रहे है और तुम अपने ही जाति भाइयो को दुरदुरा रहे हो ! तुम उनके साथ भी परहेज करते हो ! वह तो जैन है, तुम्हारी ही जाति के है और यहाँ आकर धर्मक्रिया भी करते है। परन्तु वह भी