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५२ - सम्यक्त्वपराक्रम (१)
इसी अभिप्राय से सुधर्मास्वामी ने 'आयुष्मन्' कहकर जम्बूस्वामी को सम्बोधित किया है ।
समस्त गुण आयु पर अवलम्बित है । गुण सब आधेय है और ग्रायु उनका आधार है । सुधर्मास्वामी ने इस आधार को ही पकडा है | श्राधार को ग्रहण करने से आधेय का ग्रहण स्वत: हो जाता है । उदाहरणार्थ - यह स्थान आधार है और हम सब इसके आधेय हैं । हम इस स्थान पर बैठे है इसने हमे आधार दिया है । ऐसी स्थिति मे आधार का महत्व अधिक है या आधेय का ? यद्यपि आधार का महत्व आधेय के कारण ही है । आधेय न हो तो आधार आधार ही नही माना जा सकता । फिर भी आधार का महत्व आधेय की अपेक्षा अधिक है क्योकि आधार के अभाव मे आधेय ठहर नही सकता । इस प्रकार आयु आधार है और शेष गुण आधेय हे । जैसे- पृथ्वी सब जीवो का आधार है मगर पृथ्वी के ऊपर मनुष्य आदि न रहते तो पृथ्वी को कौन पूछता ? उसे किसका आधार माना जाता ? इसो प्रकार अगर आयुष्य के साथ गुण न हो तो उसका भी काई महत्व नही माना जा सकता । गुण साथ होने से ही आयु की महत्ता है, क्योकि वह अन्य गुणो का आधार है ।
श्री आचारागसूत्र की टीका में कहा है कि 'आयुष्मान्' विशेषण जैसे जम्बूस्वामी के लिए लागू होता है, उसी प्रकार भगवान् के लिए भी लागू पडता है । जब यह विशेषण भगवान् को लागू किया जाता है तो यह अर्थ होता है कि 'हे जम्बू । मैंने प्रायुष्मान् भगवान् से इस प्रकार सुना है ।'
भगवान् को आयुष्मान् कहने का कारण यह है कि भगवान् दो प्रकार के हैं। एक भगवान् आयुष्य-रहित है,