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समुद्रदत्त चरित्र
नमाम्यहं नं पुरुषं पुगण मभृद्य गादी परमेव शाणः धियोऽमिया दुनिच्छिदर्थ मुरोजनायातितर्ग ममर्थः
मर्ष:- मै सबसे पहले उन पुराण पुरुष बीरमदेव भगवान को नमस्कार करता हूँ नोकि इस पुगके शुरु हो तुम्कर्म को नाश करने के लिये छुरी का काम देने वाली भलो बुद्धि को उत्तेजना देने के लिये स्वयं शारणम्प बन कर उस कार्य में बहुत ही समर्थ हुये।
श्रीवर्द्धमानं भुवनत्रयेतु विपत्पयोधनाणाय सेतु नमामि तं निर्जितमीनकेत नमामिनोहन्तु यतोऽघहेतुः।।२।।
प्रर्ष:-न ऊपं मध्य प्रौर पाताल इस प्रकार तीनों लोकों में जो सबसे अधिक सम्मान के पात्र हैं, जिन्हों ने कामदेव को भी जीत लिया है पोर को विपत्तियों के समुद्र से पार पहुंचने पोर पहबाने के लिये पुल के समान पाने गये हैं उन यो बर्षमान भगपान को भी नमस्कार करता है ताकि मुझे पाप का कारण पावर के मसता पाये।