Book Title: Samipya 2007 Vol 24 Ank 01 02
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
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सामवेद में स्वर - सिद्धान्त पद्धति विषयक निरूपण ।
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प्रा. हेतल पंड्या +
उच्चारण प्रकारों को नियमित करने का प्रयास विश्व की सभी भाषाओं ने अपने ढंग से किया हैं । वैदिक भाषा में उदात्त अनुदात्त, स्वरित आदि के रूप में उन्हीं उच्चारण प्रकारों को नियमित करने का प्रयास किया गया हैं । वैदिक भाषा की एक विशेषता है कि उदात्त, अनुदात्त, स्वरित आदि स्वरो का प्रयोग जहाँ शब्दों के अर्थ निर्धारण के लिये किया गया वहाँ इनमें विशेष प्रकार की गेयता भी थी । इसीलिये वैदिक भाषा में प्रयुक्त स्वर बलाघात तथा स्वराघात दोनों से सम्बन्धित हैं । प्रारम्भिक रूप में बलाघात और स्वराघात साथ साथ में प्रचलित थें और दोनों को समानरूप से महत्त्व दिया जाता था । कालान्तर में ये दोनों पद्धतियाँ अलग हो गई । अर्थ-निर्धारण के साथ जो बलाघात स्वर सम्बद्ध था वह धीरे धीरे लुप्त होता गया और स्वराघात साम के सप्त स्वरों रूप ग्रहण करता हुआ लौकिक संगीत के सात स्वरों के रूप में परिवर्तित हो गया ।
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बालाघात जिसका सम्बन्ध पहले स्वराघात से भी था, इसकी चार प्रकार की पद्धति प्रचलित दिखायी पडती हैं । चातुः स्वर्य पद्धति, त्रैस्वर्य पद्धति, द्विस्वर पद्धति, एकस्वर पद्धति । चातुः स्वर्य पद्धति : इस में मन्त्रों का उच्चारण उदात्त, अनुदात्त, स्वरित और प्रचय इन चार स्वरों में किया जाता हैं । खाण्डिकेय तथा औखेय-शाखीय कृष्णयजुर्वेदियों के ब्राह्मण में चातुः स्वर्य का विधान मिलता है । स्वरित दो प्रकार का होता है । एक स्वतन्त्र स्वरित और दूसरा आश्रित स्वरित जो स्वभावतः अनुदात होता हैं। इन चार स्वरों में उदात्त तथा स्वतन्त्र स्वरित मूल स्वर कहलाते हैं तथा अनुदात्त, आश्रित स्वरित एवं प्रचय साहितिक स्वर कहलाते हैं, क्योंकि ये सांहितिक धर्म के कारण परिवर्तित होते हैं । प्रायः प्रत्येक पद में एक वर्ण को छोड़ कर शेष वर्ण अनुदात्त होते हैं 12 कुछ पद ऐसे है जो सर्वदा अनुदात्त ही होते हैं । तथा कुछ वर्ण ऐसे होते हैं जो अवस्था विशेष में उदात्तयुक्त होते हैं, अन्यत्र सर्वानुदात्त । कुछ पद ऐसे होते हैं जो सर्वदा अनुदात्त ही होते हैं 15 पदों में स्वरों को एक निश्चित क्रम में रखा जाता हैं । यदि किसी पद में चारों स्वर हैं तो इनका क्रम अनुदात्त, उदात्त, स्वरित तथा प्रचय होगा, जैसे सुपेशसः । यदि उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित ये तीन स्वर हैं, तो ये क्रम में होंगे जैसे गुणानाम् । यदि एक पद में अनुदात्त और उदात्त दो स्वर हैं तो अनुदात्त पूर्व में होगा और स्वरित बाद में जैसे अग्निम् | यदि एक पद में उदात्त और आश्रित स्वरित दो ही स्वर हैं यदि एक पद में उदात्त और आश्रित स्वर दो ही स्वर हैं तो उदात्त पूर्व में होगा और स्वरित संहितागत मन्त्र का एक पूरा पाद आ अर्धर्च एक इकाई माना संहितिक स्वर होते हैं । इसलिये पूर्ववर्ती तथा परवर्ती उदात्त के
बाद में जैसे इन्द्र । यूंकि स्वर की दृष्टि से जाता हैं और अनुदात्त, स्वरित तथा प्रचय
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यह शोधपत्र भाषासाहित्य भवन, गुजरात युनिवर्सिटी ( अहमदाबाद) की प्राध्यापिका हेतल पंड्या द्वारा Tradic National Seminar on Bhaskariyam Bharatiyam - Dhanvantariyam, 22th to 24th December 2006 at Banglore में प्रस्तुत लेख ।
व्याख्यात्री, संस्कृत विभाग, भाषासाहित्य भवन, गुजरात युनिवर्सिटी, अहमदाबाद- ३८०००९
सामवेद में स्वर - सिद्धान्त पद्धति विषयक निरूपण
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