Book Title: Samipya 2007 Vol 24 Ank 01 02
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मेघदूत में भी यक्ष मेघ को कहता है कि वहाँ (उज्जयिनी में ) बिजली की रेखाओं की चमक से भौंचक्की (डरी) हुई नगर की नारियों की चञ्चल कनखलियोंवाली आंखो का यदि तुमने आनन्द नहीं लिया, तो तुम्हारा जीवन व्यर्थ है ।९९ यक्ष मेघ के पास दूतकर्म करवाने की इच्छा रखता है । फिर भी यक्ष के मतानुसार तो मेघ का सार्थक्य वृष्टिकर्म या दूतकर्म में नहीं, परन्तु, स्त्रीयों के नेत्रकटाक्षों के साथ रमण करने में हैं । इस प्रकार कालिदासने प्रकृति के नायक या नायिका के सौन्दर्य का विविध प्रकार से वर्णन किया है। पर इससे तो वर्ण्य पदार्थ वाचक को मात्र तादृश ही होता है। एसे वर्णनों से वाचक कवि की कल्पनाशक्ति, वर्णनशक्ति एवं अलङ्कारयोजना के प्रति साहलाद् अहोभाव का अनुभव अवश्य करता है । परन्तु, वर्ण्य सौन्दर्य तभी चरितार्थ होता है जब वह भोक्तृरूप ज्ञानेन्द्रियों को परम संतोष और आनन्द की अनुभूति करा सके । ज्ञानेन्द्रियों को अपने विषय में प्रवृत्त होने के फल मिलने की धन्यता का अनुभव करा सके । कालिदास की कृतियों में विविध ज्ञानेन्द्रियो के सुख की बात भी देखने को मिलती है । शीतल स्पर्शयुक्त पवन, मेघगर्जना, आदि के वर्णन द्वारा भी कालिदास ने स्पर्शेन्द्रिय, श्रवणेन्द्रिय आदि के सुखानुभूति की बात की है । १२ और चक्षुरिन्द्रिय के सार्थक्य की बात द्वारा कालिदास ने सौन्दर्य पर ताज का आरोपण किया है। इस प्रकार सौन्दर्य की पराकाष्टा का वर्णन किया है । यहाँ एक बात खास है कि राजा को शकुन्तला का दर्शन 'अवाप्तचक्षुः फल' लगता है। जब कि विदूषक के लिए तो राजा का दर्शन ही 'अवाप्तचक्षुः फल' है । इसी प्रकार अत्यंत सुन्दर पदार्थ या व्यक्ति सब की चक्षुरिन्द्रिय को परम तृप्ति का एवं साफल्य का अनुभव करवाने में समर्थ ही होता है ऐसा नहीं होता । किन्तु चक्षुरिन्द्रिय को परम तृप्ति, संतोष, आनंद और सार्थक्य की अनुभूति कराने में समर्थ सौन्दर्य ही सच्चा सौन्दर्य है और इसलिए ही कालिदास ने अपनी सभी कृतिओं में सौन्दर्य के वर्णन के साथ साथ उसके प्रति चक्षुरिन्द्रिय के संतोष की और उस इन्द्रिय के सार्थक्य की बात अवश्य की है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास के पुरोगामी भास 'स्वप्नवासवदत्तम्' में सौन्दर्य के बारे में कहते है कि 'सर्व के मन को आनन्द दे सके वही सौन्दर्य है । १३ कालिदास के अभिप्राय अनुसार तो जो आत्मीय होता है वो हमेशा मनोहर लगता | १४ और साथ साथ जो भोक्ता के लिए संतर्पक हो वही सौन्दर्य है । इस प्रकार केवल ज्ञानेन्द्रियों को ही नहीं परन्तु जो मन को भी छू लेता है वही सौन्दर्य है । I संस्कृत साहित्य में कालिदास का सौन्दर्यबोध और कवियों की अपेक्षा विशिष्ट है इस बात की प्रतीति हमें उपर दिये गये दृष्टान्तों से होती है । कालिदासने अपनी कृतियाँ में इस विशिष्ट सौन्दर्यबोध का रसपान पाठकों को करवाके इस तथ्य से अवगत कराया है कि सौन्दर्यदर्शन मात्र स्थूल और शारीरिक न होकर अन्तरात्मा की गहराइयों को छूते हुए परमात्मा में लीन होने का मार्ग हो सकता है। इतना ही नहीं ऐसे सौन्दर्यबोध के साहित्य का निर्माण कर कालिदास स्वयं के इस अनूठे दर्शन के याता होने का अहेसास भी पाठकों को सहज कराते हैं । १. अभिव्यक्ति की सुन्दरता यह भी है कि 'इस गम्भीर दर्शन का परिचय कालिदास बड़े ही शृंगारिक तौर पर कराते है ।' ४८ पादटीप पाठा. दृष्टव्यानां परं न दृष्टम् । अङ्क-२, अभिज्ञानशाकुन्तलम् सामीप्य: पु. २४, खंड १ -२, ओप्रिल - सप्टे. २००७ For Private and Personal Use Only

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