Book Title: Samipya 2007 Vol 24 Ank 01 02
Author(s): R P Mehta, R T Savalia
Publisher: Bholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan

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Page 49
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कालिदास में दृष्टि सौन्दर्य www.kobatirth.org डो. कालिन्दी हरिकृष्ण पाठक* 'नास्ति येषां यशःकाये जरामरणजं भयम्' यह उक्ति जिन के लिए यथार्थ है उस महाकवि कालिदास की नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा सुविदित ही है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालिदास की ध्यानाकर्षक विशेषता है उन की कृतियों में रहा हुआ विषय वैविध्य । विक्रमोर्वशीयम् में स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी पार्थिव राजा पुरुरवा के प्रति आकृष्ट हो जाए ऐसा पुरुरवा का व्यक्तित्व है, तो कुमारसम्भवम् में ब्रह्माण्ड के कल्याण के लिए शिव-पार्वती के पुत्र की प्राप्ति को कृति का विषय बनाया है । जब कि मेघदूत में तो पत्नी के विरह में कामार्त यक्ष स्थल की दूरी की मर्यादा को मर्यादा नहीं रहने देते हुए मेघ को सम्पर्क का माध्यम बनाता है। जिस समय में आज सरीखे सम्पर्क के उपकरण ही नहीं थे उस समय में कामार्त यक्ष के लिए अचेतन मेघ की दूत के रूप में कल्पना' । - यह कालिदास की समग्र विश्व साहित्य को बहुत बड़ी देन है । रघुवंश में दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम जैसे राजाओं के चरित्र-चित्रण द्वारा भारतीय राजाओं का आदर्श स्वरूप प्रस्तुत किया गया है । विविध विषयों के निरूपण में विश्वकल्याण की भावना को संकलित करके विषय का तथ्यपूर्ण आलेखन कवि का सहज कर्म है । 'कुमारसम्भवम्' और 'रघुवंशम्' में विश्वकल्याण की भावना है और मेघदूत में भारत के भूगोल का एवं ऋतुसंहार में भारतवर्ष की ऋतुओं का तथ्यपूर्ण और सरस आलेखन कालिदास ने किया है। कवि विषय की आवश्यकता अनुसार प्रकृति के किसी अंग का, नायक का या नायिका के सौन्दर्य का वर्णन करता है । नायिका के सौन्दर्य की प्रशस्ति के लिए क्वचित् पौराणिक सन्दर्भ जोड़ता है तो कभी कभी नायिका के प्रत्येक अङ्ग का वर्णन करते हुए कमल, चन्द्र, बिम्बफल आदि प्रसिद्ध उपमान का अलंकार प्रयोग करता है । इस से वाचक के मानसपट पर नायिका की तादृश प्रतिकृति उपस्थित होती है । कवि क्वचित् अनवद्य सौन्दर्य को व्याख्यायित भी करता है । कालिदास ने भी अपनी कृतियों में प्रकृति का नायक के प्रभाव का या नायिका के सौन्दर्य का विविध प्रकार से वर्णन किया है । कोई भी व्यक्ति या पदार्थ सुन्दर होने मात्र से उस का सौन्दर्य सार्थक नहीं हो जाता । सौन्दर्य भोग्यविषय है अर्थात् इन्द्रियगम्य हैं जबकि, चक्षुरिन्द्रय इस ( ग्राह्य) सौन्दर्य की भोक्तृ (ग्राहक) है । सांख्य मत के अनुसार दृश्य पदार्थ का रूप चक्षुरिन्द्रिय का विषय है । दृश्य पदार्थ का रूप चक्षुन्द्रिय का विषय बनने मात्र से ही दृश्य पदार्थ सार्थक नहीं हो जाता । कालिदास के मतानुसार भोग्य ( ग्राह्य) सौन्दर्य भोक्तृ (ग्राहक) चक्षुरिन्द्रिय को तृप्त करें इसी में ही सौन्दर्य (परित वर्ण्य पदार्थ) एवं चक्षुरिन्द्रिय की सार्थकता है । सौन्दर्य की यह पराकाष्ठा कालिदास की प्रायः सभी कृतिओं में थोडे ही शब्दभेद से अभिव्यक्त हुई जो उस प्रस्तुत अभ्यासलेख का विषय है । ૪૬ अभिज्ञानशाकुन्तल में दुष्यन्त शकुन्तला को देखते ही उस के सौन्दर्य से अभिभूत हो जाता है । दूसरे अङ्क में शकुन्तलाविषयक बात-चीत के सन्दर्भ में वह विदूषक को कहता है कि "अनवाप्त चक्षुः फलोऽसि येन त्वया दर्शनीयं न दृष्टम् ।' शकुन्तला का दर्शन राजा के चक्षुओं को सार्थक करनेवाला है। अपने आप को 'अवाप्तचक्षुः फल' माननेवाला राजा शकुन्तला का पुनः दर्शन करने के लिए विह्वल होता है और पुन: दर्शन होते * व्याख्यात्री, संस्कृत विभाग, सरदार वल्लभभाई पटेल आर्ट्स कॉलेज, अहमदाबाद सामीप्य : पु. २४, खंड १ - २, प्रिस - सप्टे. २००७ For Private and Personal Use Only

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