Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ प्रास्ताविक परिचय (३) इसके बाद भी दो दशकों तक वह महमूद के दरबार में ही रहा और उसके पूर्वजों व उसके पराक्रमों के वर्णन में अभिरुचि रखता रहा। (४) राजविनोद और दोहाद के शिलालेख की तुलना से यह धारणा बनती है कि यह शिलालेख इसी कवि की पूर्व रचना की संक्षिप्त और सम्पूर्ण आवृत्तिमात्र है। ‘एपिग्राफिआ इन्डिका' जनवरी, सन् १९३८, भाग २४ अंक ४ में यह लेख इसके मूल सम्पादक डाक्टर एच० डी० साँकलिया की टिप्पणी सहित प्रकाशित हुआ है जो बहुत महत्त्वपूर्ण है । उक्त लेख को ज्यों का त्यों एवं डाक्टर सांकलिया की टिप्पणी का अनुवाद, आवश्यक टिप्पणियों सहित, इसी पुस्तक में पृष्ठ २३ से प्रकाशित किया जा रहा है। जैसा कि ऊपर सूचित किया गया है इस काव्य की एकमात्र प्राचीन हस्तलिखित प्रति बम्बई सरकार के संग्रहालय की सम्पत्तिरूप है जो प्रना के भाण्डारकर ओरिएन्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट में सुरक्षित है । इस प्रति के कुल २८ पन्ने हैं । इसके लिखे जाने का कोई समयोल्लेख प्रति में नहीं दिया गया है । इससे यह तो निश्चित नहीं कहा जा सकता कि यह किस समय में लिखी गई होगी परन्तु, प्रति की जीर्ण-शीर्ण अवस्था देखते हुए प्रतीत होता है कि यह प्रायः रचनाकाल के बहुत पीछे लिखी हुई नहीं है; और यह तो निश्चित ही है कि उसी शताब्दी में लिखी हुई तो अवश्य है । इसको किसी राम नामक लिपिकार ने अपने आत्मज के पठनार्थ लिखा है । यह कथन अन्तिम उल्लेख से ज्ञात होता है। पाठकों के अवलोकनार्थ, प्रति के अन्तिम पत्र का चित्र भी अन्यत्र दिया जाता है जिससे प्रतिकी लिपि आदि का साक्षात् परिचय मिल सकेगा । प्रति का पाठ प्रायः शुद्ध है । पूरे काव्य में कोई ४-५ ही स्थल ऐसे दृष्टिगोचर होते हैं जो अशुद्ध कहे जा सकते हैं । इससे .मालूम होता है कि लिपिकार श्रीराम स्वयं अच्छा संस्कृत का विद्वान् होगा। महमूद बेगड़ा गुजरात के सुलतानों में प्रसिद्ध और लोकप्रिय सुलतान हुआ है । सभी हिन्दू अथवा मुसलमान इतिहास लेखकों ने समान रूप से इसकी प्रशंसा लिखी है । इन्हीं के आधार पर अंग्रेज इतिहासकारों ने भी इसके इतिहास पर पूर्ण रूप से प्रकाश डाला है । मूलत: यह सुलतान राजपूत वंश का था और इसके पूर्वजों ने किस प्रकार सत्ता हाथ में लेकर गुजरात का स्वतंत्र राज्य स्थापित किया, इसका विवरण 'मीराते सिकन्दरी' 'मीराते अहमदी,' 'तवारीख मोहम्मदशाही,' कॉमिसरियट की 'हिस्ट्री ऑफ गुजरात' व किन्लाक् फास् कृत 'रासमाला' आदि पुस्तकों के आधार पर संक्षिप्त रूप से 'वंश परिचय' शीर्षक लेख में अन्यत्र दिया गया है । इस लेख में आवश्यक पाद-टिप्पणियों के साथ राजविनोद महाकाव्य के वे श्लोक भी उद्धृत किए गए हैं जिनसे मुख्य-मुख्य ऐतिहासिक घटनाओं पर प्रकाश पड़ता हैं । इससे यह भी स्पष्ट हो जावेगा कि रामपिनोद महाकाव्य केवल साहित्यिक विनोद न होकर अपना ऐतिहासिक महत्त्व भी रखता है। इस महाकाव्य के कर्ता कवि उदयराज के विषय में अभी और कोई विशेष परिचय प्राप्त नहीं है । कृति को देखते हुए यही प्रतीत होता है कि वह बहमूद का समकालीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80