Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 68
________________ महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख [३३ जिन पंक्तियों में उसके युद्धों का वर्णन किया गया है वे दुर्भाग्य से कई जगह खण्डित हो गई हैं, अतः इन सब घटनाओं का ठीक-ठीक पता लगाना कठिन है। आठवें पद्य में दक्षिण दिक्पति और दम्मण के अधिपति के साथ महमूद के सम्बन्धों का वर्णन है (?) रेवत तक पथ्वी पर अधिकार (?) का भी जिकर है। (पद्य के) पूर्व भाग में मालवा के महमूद खिलजी द्वारा १४६२ और १४६३ ई० में दक्षिण दिक्पति' निजाम शाह पर चढ़ाई करने के अवसर पर महमूद ने जो सहायता को थी उसका उल्लेख किया गया प्रतीत होता है और अपर भाग में दम्मण के पास पारडो के राजा द्वारा १४६४ ई० में किए गए आत्म-समर्पण की ओर संकेत है। रेवत अर्थात् जूनागढ़ के गिरनार पर्वत का उल्लेख करने से महमूद द्वारा १४६६ ई० में उस राज्य पर किए पहले हमले से तात्पर्य है । उस समय वहाँ के राजा रावमांडलिक से महमूद ने कर वसूल किया था और उसे राजचिह्न छोड़ने को बाध्य किया था। आगे पद्य में लिखा है कि महमूद ने उस दुर्भेद्य जूना (जोर्ण) गढ़ को विजय किया और उसकी कोति को चिरस्थायी करने के लिये रैवताचल ही विजय स्तम्भ बनाया गया। इससे जूनागढ़ के किले को पूर्णतया जीत कर दिसम्बर १४७० ई० में सोरठ को गुजरात में सम्मिलित कर लेने को ओर लक्ष्य किया गया है। मुसलमान इतिहासकारों का कहना है कि गिरनार के राजा को फिर आत्म-समर्पण करने के लिए दबाया गया तब उसने इस्लाम धर्म को अंगीकार कर लिया और उसको 'खान-ए-जहान्' को उपाधि प्रदान की गई। पहाड़ी को तलहटी में महमूद ने मुश्तफाबाद नामक नगर बसाया और वह नगर भी उसको राजधानियों में से एक था--साथ हो, वह उसके ठहरने का एक मनचाहा स्थान भी था । * के० हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०४-०५; ब्रिग्स पृ० ४६-५१; फरीदी पृ० ४० ४२; बर्ड ने पृ० २०६ पर एक ही लड़ाई का हाल १४६१-६२ लिखा है। रॉस पृ० १७.. कै. हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०५; बर्ड ने इसका कोई उल्लेख नहीं किया है; ब्रिन्स ने पृ० ५१ पर दम्मण का तो उल्लेख नहीं किया है परन्तु १४६५ ई०.. में गुजरात से कोंकण की चढ़ाई का वर्णन अवश्य किया है। फरीदी ने पृ० ४२ पर. बड़ोदर पर्वत पर चढ़ाई और एक चट्टानी किले की विजय का उल्लेख किया है ।। रॉस ने पृ० १८ पर (Bardu) बरडू विजय का हाल लिखा है । यह एक पहाड़ी पर स्थित है जो दम्मण के सामने देखती हुई है । ..* के० हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०५; ब्रिग्स के मतानुसार पहला हमला १४३९ ई० में हुआ पृ० ५२; फरीदी (पृ० ५३-५४) और बर्ड इस हमले को १४६७ ई० के आस पास हुआ बताते हैं।; रॉस-पृ० १९ १० हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०५-०६; पृ० ५५, पृ० ५७ और पृ० २०६ पर १४७२ लिखा है। कै० हि० इ०, पृ० ३०६-०७; पृ० ५६, ५७, २०६, २०, २५, २६ क्रमशः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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