Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 74
________________ महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख दोहाद से प्राप्त हुए जयसिंह और कुमारपाल के समय के शिलालेखों में भी दधिपद्र शब्द का प्रयोग मिलता है। मुसलमान इतिहासकार दोहाद में दुर्ग निर्माण के जिस प्रश्न को पूर्णतया हल नहीं कर सके थे वह प्रस्तुत शिलालेख से हो जाता है। उदाहरणार्थ, मोराते अहमदी के लेखक ने एक जगह लिखा है कि दोहाद को व्यापारी मण्डी की पहाड़ियों में अहमदशाह ने एक किला बनवाया, दूसरी जगह इसके बनवाने का श्रेय मुजफ्फर (द्वितीय) को दिया गया है। परन्तु, मीरात-ए-सिकन्दरी के कर्ता का अभिप्राय है कि धमोद और दोहाद एक ही स्थान के नाम हैं और दोहाद का किला अहमद (प्रथम)* ने बनवाया तथा मुज़फ्फर ने मालवा जाते हुए १५१४+ ई० में इसका र्जीर्णोद्धार कराया। ____ हमारे शिलालेख के प्रसंग से ज्ञात होता है कि दधिपद्र में किला तो पहले ही मौजूद था परन्तु वह टूटी-फूटी दशा में था । इसका र्जीर्णोद्धार महमूद (प्रथम) के समय में मलिक इमादल ने कराया। सम्भवतः यह किला अहमद (प्रथम) का हो बनवाया हुआ था, जैसा कि ऊपर बताया गया है। - हम ऊपर लिख चुके हैं कि बागूला या तो फरिश्ता द्वारा उल्लिखित 'बगलान' है अथवा अबुल फजल|| व अन्य ग्रन्थ कर्ताओं के मतानुसार “बागलान" है । फरिश्ता का कहना है कि यह 'सूरत' के पास का प्रदेश है; दूसरे लोगों का मत है कि यह सूरत और नन्दरबार के बीच का पहाड़ी और घनी आबादी वाला प्रदेश था। आजकल के नासिक जिले** का एक भाग जो बागलान कहलाता है वह इस वर्णन से मिलता है । मुसलमान इतिहासकारों के मतानुसार इस स्थान के शासक राष्ट्रकूट वंश के थे । ये लोग और कन्नौज के राठौड़ एक ही थे। इन लोगों को वंशपरम्परागत उपाधि 'बहरजी' थी जो * इण्डियन एण्टिक्वेरी, जि० १०, पृ० १५६ + बर्ड, १० १६० बर्ड, पृ० २२२ * 'दोहाद का एक थान का कोट खिचवाया जो पहाड़ियों के बीच में था। फरीदी, पृ० १७ फिरीदी, पृ० ६६ दधिपद्रे रुचिरतरं दुग्गं वै-प० १६ . न उद्धरेत् प० २१ ६ ब्रिग्स, जि० ४, पृ० १९ व ३०. . || आईन ए अकबरी (ग्लैंडविन), जि०२, पृ० ७३। इस का उल्लेख सर्वप्रथम, Bombay Gaz, Vol. XVI, p. 188; Vol. VII, p. 65 and 189 में किया गया है। ** Bombay Gaz. Vol. XVI, p. 399. ... .. .... tf बर्ड द्वारा उल्लिखित 'मोआमिरुल उमरा' (उमरावों का इतिहास) पृ० १२२-इसका यह कथन विश्वसनीय नहीं है कि 'जमीदार के पास ......देश चौदह सौ वर्ष से कब्जे में था।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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