Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 73
________________ ३८] महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख तथा उसका जीर्णोद्धार कराया क्योंकि उसका पिता हाजी सुलतानी चाँपानेर की चढ़ाई* के पहले ही मर चुका था । इस शिलालेख में अहम्मदपुर, चम्पक (पद्र), चम्पकपुर, दधिपद्र नामक स्थानों, गूर्जर, मालवक, दम्मण और बागूला के अधिपतियों; पावक और जीर्ण (?) दुर्गों तथा रैवतक पर्वत के नाम आये हैं। जिस प्रसंग में अहम्मदपुर का नाम आया है वह स्पष्ट नहीं है । अधिक सम्भव यही है कि इससे अहमदाबाद ही का तात्पर्य है जिसको अहमदशाह ने प्राचीन नगर आशावाल के स्थान पर बसाया था। यहां पर उसी के बसाये हुए अहमदनगर का प्रसंग इसलिये ठीक नहीं बैठता कि महमूद द्वारा वहाँ पर बनवाई हुई किसी भी इमारत का उल्लेख नहीं मिलता है। जब कि अहमदाबाद में उसने चाँपानेर विजय करने के बाद हो बहुत-सी शानदार इमारतें, | नगर के चारों तरफ एक दोवार व बहुत-सो बुनें बनवाई थों। चम्पक (पद्र) अथवा चम्पकपुर ही आधुनिक चांपानेर है जिसके प्राचीन गौरव का इतिहासकारों ने बखान किया है। महमूद को बनवाई हुई कितनी ही इमारतों के खण्डहर अब भी चाँपानेर में मौजूद हैं । इनमें से गढ़ (राज प्रासाद) का परकोटा, बुर्जे, दरवाजे, राहदारी के थाने, मस्जिदें और छतरियाँ मुख्य हैं। सबसे बढ़ कर जामा मस्जिद है।। दधिपद्र और दोहाद एक ही हैं । इसका शब्दार्थ है दधि पर बसा हुआ पद (गाँव)। दधि से तात्पर्य है दधिमती नदी जिसके किनारे आजकल दोहाद** बसा हुआ है। * कै० हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०९ + कै० हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०० बर्ड, पृ० १६० कै. हि० इ०, जि० ३, पृ० ६१२; जि० ४, पृ० ७० $ आईन-ए-अकबरी (अबुल फज़ल) जि० २, पृ० २४१-२४२ || इस मसजिद और दूसरी इमारतों के लिए देखिए-आर्कियालाजिकल सर्वे, वेस्टर्न इण्डिया, भा० ६, पृ० ४१ (Arch. Surey West India, Vol. VI, P. 41 and Pts, LVI, LVI II,LXI, and XIV; and C. H I. Vol. III, 612-13 and Pt. XXV और कै० हि० इ०, भा ३, पृ० ६१२-१३ ** पौराणिक आधार पर इसका नाम दध्येश्वर महादेव के कारण दधिपुर का नगर था । दध्येश्वर महादेव दधिमती नदी पर स्थित है। नदी का नाम दधिमती इसलिए पड़ा कि दधीचि ऋषि यहां पर रहते थे । इन आधारों पर दधिपद्र नाम ही अधिक संगत जान पड़ता है । दधिपुर नगर तो बाद में शिव की पुरातनता बताने के लिए नाम रख लिया जान पड़ता है । [ इस गाँव का स्थानिक उच्चारण 'देवद' या 'दहिवद' है जो ठीक 'दधिपद्र' का अपभ्रंश है। मुसलमानों ने अपने जिह्वा-वैक्लव्य के कारण इसको 'दाहोद' या दोहाद कह कर बोलना शुरू किया और उसी तरह लिखना प्रारंभ किया और फिर जिसका अनुकरण इग्रेजों ने किया-जिन विजय ।] +-.. +- - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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