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४२] महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख हुआ है जीर्णदुर्ग,* झिंझरकोट अथवा जूनागढ़ कहलाता था। इसोको शायद आजकल ऊपरकोट | कहते हैं । वास्तव में, यह परकोटे से घिरा हुआ राजमहल था । यह मुग़लों को गढ़ियों जैसा था और सम्भवतः इसको गिरनार के चूड़ासमा राजाओं ने बनवाया था। दूसरा किला पहाड़ के ऊपर बना हुआ था और अब उसके कोई भी चिह्न अवशिष्ट नहीं हैं । इस पर्वत का प्राचीन नाम रैवत अथवा ऊर्जयन्त (उज्जयन्त) से बदल कर गिरिनगर के आधार पर गिरनार होना और शहर का नाम जीर्णदुर्ग अथवा जूनागढ़ में बदल जाना सम्भवतः १५ वीं शताब्दी के बाद की बात है।
रैवतक गिरनार पर्वत का ही दूसरा नाम प्रतीत होता है । इसी स्थान पर मिले हुए एक शिलालेख में इस पर्वत का नाम ऊर्जयत् लिखा है । स्कन्दगुप्त** के लेख में ये दोनों ही नाम मिलते हैं। फ्लीट साहब का मत है कि गिरनार को दो पहाड़ियों में से एक का नाम रैवतक है न कि खास गिरनारही का। इसके बाद १३०० ई० तक का कोई शिलालेख सम्बन्धी प्रमाण अबतक प्राप्त नहीं हुआ है। इसके बाद के शिलालेखों में रैवत
__ * मल्लदेव का चोरवाड़ का लेख वि० सं० १४४५ (रिवाइज्ड लिस्ट एण्टि० रिमेन्स बाम्बे प्रेसि०, पृ० २५०; ब्रिग्स, जि० २१, परिशिष्ट पृ० १०३ सं० ७३१; थेपक राजा मेहरा के हथसनी के लेख ; इण्डि० एण्टि०, भा० १५, पृ० ३६० ; वही० भा० १६, परि० पृ० ६८
+ रिवाइज्ड् लिस्ट बाम्बे प्रेसि०, पृ० ३६१ लेब क्र० ३५ पंक्ति ६
ब्रिग्स, जि० ४, पृ० ५३
पा यह हिन्दू ढंग का बना हुआ और सम्भवतः १३वीं अथवा १४वीं शताब्दी का है या इससे भी पहले का हो सकता है । (आकियालॉजिकल सर्वे वेस्टर्न इण्डिया, भा० २, पृ० १५)
६ फ़रिश्ता (ब्रिग्स, जि० ४, पृ० ५३) “पहाड़ पर ......दृढ़तम किला"। || रुद्रदामन का लेख (ब्रिग्स, जि० ८, पृ० ४२) ** गुप्तकालीन लेख, कॉ० ई० इं०, भा० ३, पृ० ६०
+f वही पृ० ६४ नो० १; “ऊर्जयत् अथवा गिरनार के सामने का पहाड़ ।" परन्तु 'बाम्बे गजेटियर' जि० ८, पृ० ४४१-४२ में लिखा है कि रेलतकुण्ड (जो दामोदर कुण्ड भी कहलाता है) के ठीक ऊपरवाले पर्वत को ही रेवताचल कहते हैं । इसका नाम रेवताचल, राजा रेवत के नाम पर पड़ा है । कहते हैं कि अपनी पुत्री रेवती का विवाह श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव के साथ करने के बाद राजा रेवत द्वारका से गिरनार आकर रहने लगा था। भागवतपुराण के स्कन्ध १० अध्याय ५२ में इस कथा का उल्लेख है । वहाँ रेवत को आनर्तराज लिखा है परन्तु यह नहीं लिखा है कि वह गिरनार जाकर रहने लगा था।
जौनपुर के ईश्वर वर्मन् के शिलालेख में रेवतक का उल्लेख है । गुप्तकालीन लेख कॉ० ई० इं०, भा० ३, पृ० २३०
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