Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 71
________________ महमूद बेड़ा का दोहाद का शिलालखे इक्कीस पद्य में फिर लिखा है कि इमादल ने महमूदशाह की आज्ञा से [ चम्पक पुर (चांपानेर ? ) ] में एक सुदृढ़ दुर्ग और बावड़ी बनवाई । यहाँ दुर्ग से तात्पर्य चाँपानेर के चारों ओर की उस बाहरी दीवार और विशेष परकोटे से है जिसको बनवाने के लिए महमूद ने आज्ञा दी थी। * ३६ ] पद्य सं० २२-२५ में बागूलाधिपति का वर्णन है जिसका नाम जयदेव था (पद्य २२ ) । इमादल ने उसकी सेना को पूर्णतः पराजित कर दिया था । तेईसवें पद्य में यदुर्ग विजय का उल्लेख है। यह राय (राजा) का दुर्ग सम्भवतः इसो ( जयदेव ) राजा का था । चौबीसवें पद्य में फिर किसी किले पर विजय प्राप्त करने का वर्णन है । यहाँ पर यह स्पष्ट नहीं है कि ये सब पद्य पावागढ़ के राजा हो के विषय में हैं जिसका नाम जयदेव था और जिसको पावागढ़ के शिलालेख का जयसिंहदेव बताया जाता है अथवा बागूलाधिपति जयदेव के विषय में जो पावागढ़ के राजा से भिन्न व्यक्ति था । पूर्व पक्ष को मान लेने के लिए पद्य २३ में प्रयुक्त 'दिग्विजय' शब्द ही साधक है । सम्भव है पावागढ़ की विजय को ही 'बिग्विजय' कहा गया हो। क्योंकि इसे अब तक कोई भी गुजरात का सुलतान पूर्ण नहीं कर सका था। फिर, यही एक ऐसा हिन्दू राज्य था जो अब तक स्वतन्त्र बना हुआ था। इस दलील में तो कोई सार नहीं है कि चम्पकपुर विजय का उल्लेख एक ही बार किया गया है और फिर नहीं किया गया क्योंकि २५ वें पद्य में फिर 'पावक' का उल्लेख मौजूद है। यह प्रश्न तब तक ठीक-ठीक हल नहीं हो सकता जबतक कि बागूला का पता न लगा लिया जाये । शायद यह उस भू भाग का दूसरा नाम हो जिस पर चांपानेर का राजा राज्य करता था । सम्भव है, पासही के प्रदेश बागड़ से भिन्न नाम रखने के लिये ही ऐसा किया गया हो अन्यथा यह 'बागलान' हो जो गुजरात और दक्षिण + के बीच में एक छोटी-सी राजपूत रियासत थो। मुसलमान लेखकों द्वारा बागूला का कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। छब्बीसवें पद्य में, जो ठीक ठीक नहीं पढ़ा जा सका है, दधिपत्र ( आधुनिक दोहाद ) सुन्दर किले का उल्लेख है। यह किला इमादल मुल्क द्वारा शक सम्वत् १४१० व विक्रम * बाम्बे गेजे ०, जि० १, भा० १, पृ० २४७; बर्ड पृ० २१२; बेले ( तबका अकबरी, पृ० २१० ) । यह विचारणीय है कि यद्यपि 'मीराते अहमदी' का लेखक 'मीराते सिकन्दरी' के आधार पर ही चलता है परन्तु 'सिकन्दरी' में इसका कोई उल्लेख नहीं है । ० हि० इ०, जि० ३, पृ० ६१२ और pt. 25; Beley (बेले) ने पृ० २१२ पर एक नोट में लिखा है कि 'यह ऊपरवाला 'राजप्रासाद' मालूम होता है । स्पष्ट ही दिखाई पड़ता है कि ऊपर के किले के अवशेषों की बनावट मुसलमानी ढंग की है । यह महमूद बेगड़ा द्वारा बनवाया हुआ बताया जाता है जिसने इसका नाम 'मान महेश' रक्खा था। देखिए 'बॉम्बे गजेटियर' जि० ३, पृ० ११० + यह दक्षिण सम्भवतः पल्लिदेश (वर्तमान गोधरा तालुका) के बहुत समीप है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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