________________
३४ ]
महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख
पद्य संख्या १०-१२ में बताया गया है कि महमूद ने चम्पक ( पत्र ? ) अर्थात् वर्तमान (चाँपानेर) को ले लिया, पावक * (पावागढ़) को जीत कर वहाँ के शासक को जीवित पकड़ लिया और उस नगर पर राज्य करने लगा । यहाँ चम्पानेर और इसके किले पावागढ़ पर अन्तिम विजय के सम्बन्ध में मुख्य मुख्य घटनाओं का पता चलता है। मालवा और गुजरात के बीच में चांपानेर एक 'राजनैतिक स्थिति' का राज्य था । यहाँ के शासक चौहान शाखा के राजपूत थे और गुजरात के पास यही एकमात्र हिन्दू राज्य था । इसलिए जब कभी मालवा के शासक को गुजरात पर आक्रमण करना होता तो वह पहले चाँपानेर के राजा को बहकाता था अथवा यदि उसी को कोई आपत्ति होती तो वह स्वयं गुजरात प्रदेश में लूट मार करके वहाँ के सुलतानों को तंग किया करता था। इस प्रकार, इस राजा और गुजरात के सुलतानों में प्रायः छुटपुट की लड़ाइयाँ और कभी-कभी बड़ी लड़ाइयाँ होतीं ही रहती थीं परन्तु महमूद से पहले कोई भी सुलतान पावागढ़ की जीत कर वहाँ के राजा को काबू में नहीं कर सका था ।
उस समय सम्भवतः जयसिंह चांपानेर का राजा था और महमूद उसके विद्रोहपूर्ण कार्यों को अच्छी तरह जानता था परन्तु बहुत समय तक उसके राज्य पर आक्रमण
* जयसिंह का वि० स० १५२५ का एक शिलालेख, इण्डियन एण्टीक्वेरी, जि० ६, पृ० २ रासमाला जि० १ पृ० ३५७ ( रॉलिन्सन ); बाम्बे गजेटियर, जि० ३, पृ० ३०४; ब्रिग्स, जि० ४, पृ० ६६ | आजकल इनके प्रतिनिधि छोटा उदयपुर और देवगढ़ बारिया के राजा हैं ।
+ वि सं ० १५२५ के लेखानुसार जयसिंह उस समय पावक दुर्ग पर राज्य करता था और शायद महमूद के हमले तक भी वही राज्य कर रहा था । प्रस्तुत शिलालेख के २१ वें पद्य में जिस जयदेव का नाम आया है वह वास्तव में जयसिंह ही है क्योंकि ' तबकाते अकबरी' (ब्रिग्स् द्वारा संपादित पृ० २१२ ) और 'मीराते सिकन्दरी' (फरीदी पृ० ५८ ) में भी लिखा है कि चाँपानेर के राजा 'जयसिंह' को महमूद ने हराया था । इन नामों में बहुत समानता है। इसके अतिरिक्त लेख में दिए हुए उसके पूर्वजों के नाम मुसलमान इतिहासकारों द्वारा दिए हुए नामों से मिलते हैं। यथा
ल
जयसिंह के १५२५ वि० स० का लेख (१) वीर धवल
(२) त्र्यम्बक भूप
(३) गंगराजेश्वर
Jain Education International
...मुसलमान इतिहासकार
(१) वीरसिंह ( तबकाते अकबरी ) यह सम्भवतः अहमदशाह का समकालीन था ।
(२) त्रिम्बक दास (मीराते सिकन्दरी पृ० १४- १७) यह भी अहमदशाह का समकालीन था ।
(३) गंगादास ( मीरा सिकन्दरी पृ० २४ व ३० ) यह कुतुबुद्दीन का समकालीन था
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org