Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 70
________________ महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख करने का कोई अवसर नहीं मिला। निदान, १४८२ ई० में जब चांपानेर के एक पताई* द्वारा पड़ौसी प्रदेश का सूबेदार मलिक सूद मारा गया तो उसे मौका मिल गया। उसके इस कार्य से नाराज होकर महमूद ने चांपानेर पर चढ़ाई की और उस पर अधिकार करके वहाँ एक मस्जिद बनवाई । पताई ने पावागढ़ में शरण ली और महमूद ने उस किले को घेर लिया। यह घेरा २१ महीनों तक चला और अन्त में चालाको से किले पर हमला बोल दिया गया । हताश होकर राजपूतों ने (जो अब बहुत थोड़े रह गये थे) स्त्रियों को जीवित जला कर जौहर पूर्ण किया और मरणपर्यन्त मुसलमानों से अन्तिम युद्ध करने के लिये मैदान में आ गए। (इसका उल्लेख शिलालेख में किया गया मालूम होता है) कहते हैं कि और सब राजपूत मारे गये परन्तु राजा पताई और उसका एक मन्त्री डूंगरशी जीवित पकड़े गए । महमूद उनके साहस और वीरतापूर्ण युद्ध करने पर बहुत प्रसन्न हुआ और जब उनके घाव ठोक हो गए तो उन्हें इसलाम धर्म अंगीकार करने के लिये कहा । जब वे इन्कार हो गए तो उन्हें कैद कर दिया गया और फिर सोचने के लिए समय दिया गया। जब उन्होंने फिर सुलतान के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और मुसलमान न होने का दृढ़ निश्चय प्रकट किया तो पाँच* महीने बाद उनको फाँसी दे दी गई। इसके बाद महमूद ने महमूदाबाद नगर बसाया और इसके चारों तरफ़ एक किला बनाया जो जहाँपनाह कहलाया। १३-१४ पद्यों का तात्पर्य यह है कि इस नए जीते हुए प्रदेश पर शासन करने के लिए इमादल को नियुक्त किया गया ।। - आगे के कुछ पद्यों में मलिक इमादल द्वारा पल्लिदेश की विजय और वहाँ पर एक गढ़ी निर्माण कराने का वर्णन है । इमादल को आज्ञा से बने हुए इसी किले व वहीं पर खुदवाए हुए दो तालाबों का उल्लेख १९ वें पद्य में किया गया प्रतीत होता है। जैसा कि आगे बताया गया है, यह पल्लिदेश गोधरा जिले का ही कुछ भाग था न कि राजपूताने का वह जिला जो इस नाम से प्रसिद्ध है। - पद्य संख्या २० में एक कुएं का वर्णन है जो, स्पष्ट है कि, इमादल द्वारा अहम्मदपुर में खुदवाया गया था। यहां अहम्मदपुर से अहमदाबाद का तात्पर्य है न कि अहमदनगर का। _ * दूसरे इतिहासकारों (जैसे फरिश्ता, ब्रिग्स पृ० ६६) ने उसे 'बेनीराय' लिखा हैं; फरीदी (पृ० ६५-६७) ने रावल पताई, वर्ड (पृ० २१२) ने 'रावल तुप्पई, और बेले ने 'लोकल महोमेदन डाइनेस्टीज़ गुजरात' (१८८६, पृ० २११) में 'राय पताई' लिखा है । इससे विदित होता है कि दूसरे 'चाहमान' अथवा 'चौहान'. वंश के राजाओं की तरह चांपानेर के राजा भी 'राय' कहलाते थे । वाटसन (इन्डि० एण्टि०, जि० ६, पृ० २) का यह अनुमान ठीक है कि 'पताई' पावापति का संक्षिप्त रूप है। __ * के० हि० इ०, जि० ३, पृ० ३०६-१०; फरीदी, पृ० ६६-६७ फरिश्ता, जि० ४, पृ० ६६-७०; रॉस, पृ० २७-३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80