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प्रास्ताविक परिचय
उदयराजकृन राजविनोद है। शेष सर्गों में स्वयं महमूद के परा- क्रमों (१४५८ से १४६६ ई० तक) का वर्णन है।
दोहाद का शिलालेख का वर्णन है और शेष २० पद्यों में महमूद के राज्यकाल में १४५८ ई० से १४८८ ई. तक की घटनाओं का वर्णन
6--प्रथम सर्ग के तीसरे पद्य में कवि ने लिखा है--शिलालेख की रचना का प्रकार प्रायः
है कि “पूजोपहाराय मयोपनीतः कवित्त्व- राजविनोद के समान ही है । ऐसा प्रतीत पुष्पजलिरेष रम्यः ।" इससे होता है कि राजविनोद के कर्ता ने ही विदित होता है कि महमूद की कृपा बहुत समय तक सुलतान की कृपा का प्राप्त करने के लिये (सम्भवतः) उसके उपभोग कर चुकने के बाद इसकी रचना दरबार में प्रवेश पाने के लिये ही यह की थी । शिलालेख में बहुत से ऐसे काव्य लिखा गया था।
पुरुषों और स्थानों का उल्लेख है जिनका राजविनोद में वर्णन नहीं है । अतः स्पष्ट है कि यह राजविनोद के रचनाकाल से शिलालेख के समय (१४८८ ई०) तक की घटनाओं का वर्णन उसी कवि ने इस लेख में किया है।
१०--राजविनोद में महमूद के पूर्वज अहंमद १०--शिलालेख में भी अहंमद को अहंमदेन्द्र
को अहंमदेन्द्र लिखा है । (पृ० ५ व ६) लिखा है । (पद्य ४) १६ -राज विनोद, सर्ग २, पद्य १८ में महमूद ११--शिलालेख में पावकदुर्ग पर (नवम्बर
द्वारा पावागढ़ पर आक्रमण करने का १४८४ ई०) चढ़ाई का उल्लेख यों वर्णन है:
किया है:--- "यस्य प्रतापभरपावकसङ्गमेन
"जित्वा पावक (दुर्ग) पित्रारुद्धं दग्धस्य पावकगिरेः शिखरान्तेरषु ।
प्रतापतापूर्व ॥१०॥ प्रेक्षन्त जर्जरसुधाविधुराणि भस्म
महमूदपहोपालप्रतापेनैव पावकम् । राशिप्रभाभि रिपवो निजमन्दिराणि ॥" प्रविश्य ज्वालितं सर्व वैरिवृन्दं पतंगवत्॥११॥
जीवंतं तत्पति (बद्धवा) दुर्ग नोत्वा
महाबलं । चकार तत्पुरे राज्यं महमूदमहोश्वरः॥१२॥
डा० सांकलिया ने लिखा है कि पावागढ़ लेने के लिये अहंमद का प्रयत्न असफल हुआ था। (एपि० इण्डि०, जन० १६३८ पृ० ३२१ ।
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