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राजविनोद महाकाव्य अहमदाबाद के सुलतानों में महमूदशाह, यदि सबसे महान् नहीं तो अत्यन्त लोकप्रिय अवश्य हुआ है । जैसे हिन्दू सम्राट सिद्धराज के विषय में कितनी ही किम्वदनियाँ और अद्भुत कथाएं प्रचलित हैं वैसे ही इसके विषय में भी कितनी ही बातें प्रसिद्ध हैं । महमूद की शारीरिक गठन, शूरता, बल, न्याय, परोपकार, इसलाम पर दृढ़ आस्था, नियम पालन में दृढ़ता और विचारशक्ति की श्रेष्ठता का समानरूप से बखान हुआ है। उसकी 'बेगड़ा' उपाधि के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि जिस बैल के सींग दाएं बाएं लम्बे (एक आदमी दूसरे से मिलते समय हाथ बढाए इसतरह) हों उस बल को हिंदी में बेगड़ा कहते हैं। सुलतान को मूर्छ इसी तरह की थी इसलिए लोग उसे बेगड़ा कहते थे । दूसरा मत यह है कि सुलतान महमूदने जूनागढ़ और चम्पानेर के दो किले जीते थे इसलिए वह (बे-दो; गढा-किला) बेगड़ा (दो किलों का विजेता) कहलाता था।'
कहते है कि, वह बहुत खाने वाला था और इतने बड़े राज्य का स्वामी और राजवैभव में रहनेवाला होने पर भी उसकी जठराग्नि बहुत प्रबल थी । वह कला प्रेमी था और इमारतों का उसे बहुत शौक था। गुजरात की मुसलमानी इमारतों में से अधिकांश के साथ महमूद बेगड़ा का नाम सम्बद्ध है । मुश्तफाबाद और महमूदाबाद (चम्पानेर) के अतिरिक्त वात्रक नदी के किनारे उसने अपने नाम से एक और शहर बसाया था जिसके चारों ओर कोट खिचवाकर अच्छी अच्छी इमारतें बनवाई थीं । इसी नदी के किनारे पर उसने एक उत्कृष्ट महल बनवाया था जिसके अवशिष्ट अब तक वर्तमान हैं। वह इन्हीं तीन नगरों में से एक में प्रायः बना रहता था परन्तु गरमी के दिनों में जब मतीरे (तरबूज) पक जाते हैं तब अहमदाबाद अवश्य जाता था। मीराते अहमदी के कर्ता ने आगे चलकर लिखा है कि गुजरात देश में जितने शहरों, कसबों और गाँवों में फलों के पेड़ हैं वे सब महमूद के समय में लगाए हुए हैं।
मीराते सिकन्दरी में लिखा है कि अपनी बीमारी की अवस्था में उसने फरमाया कि शाहजादा खलील खां को बुलाओ। परन्तु, वह आकर पहुंचा इससे पहले ही हि० स० ६१७ के मुबारक रमज़ान महीने में सोमवार के दिन दोपहर की नमाज़ के बख्त इस फानी दुनिया को छोड़ कर अनन्त धाम के लिए विदा हो गया।.... उस समय उसकी उम्र ६७ वर्ष और तीन महीने की थी।
कॉमिसरियट-हिस्ट्री आफ गजरात भा० १ पृ० २०७ में लिखा है कि उसकी मृत्यु २३ नवम्बर १५५१ ई० को हुई । उस समय वह अपने ६७ वें वर्ष में था।
(१) फरिश्ता । (२) मीराते अहमदी (१८५६ ई०) (३) शाखोटैः कुटजैश्च शाल्मलिवनश्च्छन्नाश्च या भूमय
स्तत्राशोक रसालबाल-बकुलै रम्याः कृताः वाटिकाः। आक्रांताः किटिकोटिमर्कटकुलैर्हर्यक्षव्यक्षश्च यास्तत्रानेन पुराणि पुण्यजनतापूर्णानि क्लुपतानि च ।। २४ ॥ रा. वि. सर्ग ।
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