Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 30
________________ महमूद बेगड़ा का वंश-परिचय जहाजो लड़ाइयाँ लड़ने के कारण उसको प्रसिद्धि यूरोपीय देशों तक फैल गई थी। मिस्टर एल्फिन्स्टन ने लिखा है कि इस बादशाह क विषय में तत्कालीन प्रवासियों के बड़े भयानक विचार थे । Bartema ( बार्टिमा ) और Barbosa ( बार्बोसा ) दोनों ही में उसका विस्तारसहित वर्णन किया गया है । एक यात्री ने उसके शरीर की बनावट के विषय में भयंकर वर्णन लिखा है । उसके असाधारण मात्रा में भोजन करने और उसके शरीर में विष होने के बारे में दोनों ही लेखक सहमत है । विषेला भोजन करते करते उसके शरीर में इतना विष फैल गया था कि यदि कोई मक्खी उड़ती उड़ती आकर बैठ जाती तो तुरन्त मर जाती थी। सत्तावान् मनुष्यों को दण्ड देने की उसको साधारण रीति यह थी कि पान खाकर उन पर पीक की पिचकारी मार देता था। बटलर ने "खम्भात के राजा की बात" लिखी है जिसमें उसका नित्य का भोजन दो जहरी साँप और एक जहरी मेंढक लिखा है। मीराते सिकन्दरी में लिखा है कि साधारण भोजन के अतिरिक्त १५० सोन केले व गुजराती तौल का सवा मन रायता उसके नित्य के भोजन में सम्मिलित थे। रात को सोते समय दो बड़े बड़े भगोने पूओं व बड़े भुजियों के भरे हुए उसके पलंग के दोती ओर रख दिए जाते थे। जब तक नींद न आती वह इधर उधर करवट लेकर कृतको खाता रहता था। बीचमें नींद खुलजाने पर भी वह उन्हें खाने लगता था। हे श्रयः कहा करता था कि यदि वह बादशाह न होता तो उसकी जठराग्ति विस कार शान्त होती? . मोरात सोकन्दरी में इस सुलतान के चरित्र एवं राज्य-प्रवन्ध के विषय में जो विवरण लिखा है वह इस प्रकार है ___"यहां यह बात प्रकट करना है कि यह सुलतान गुजरात के सुलतानों में सब से उत्तम था। न्याय में, धर्म में, संग्राम में, इसलाम धर्म के नियमों का पालन करने में, बाल्य, यौवन, और वृद्धावस्था में सदैव एकसार उत्तम बुद्धि रखने में, शारीरक सामर्थ्य में और उदारता में अद्वितीय था। इतने बड़े राज्य वैभव और महान् वेश का स्वामी होते हुए भी उसको पांचन-शक्ति बहुत प्रबल थी। (इसके राज्य में) गुजरात देश में एक नई स्फूर्ति आई जो कितने ही समय पूर्व तक न आई थी। सेना सुव्यवस्थित थी और प्रजा निरुपद्रव थी। साधु-सन्त स्थिर चित्त से भजन में व्यस्त रहते थे और व्यापारी अपने व्यापार और लाभ से प्रसन्न थे। देश में सर्वत्र शान्ति थी और चोरों का भय नहीं था। सोने की शैली लिये हुए अकेला आवमी पूर्व से पश्चिम तक घूम आता है । हे सम्राट ! तेरे भय से संसार की सभी दिशाएं निर्भय हैं । इस प्रकार किसी को पुकार करने की आवश्यकता ही न पड़ती थी।" ... "सुलतान की आजा थी कि कोई अमीर अथवा सैनिक अधिकारी युद्ध में मारा जाय वा स्वाभाविक रीति से मर जाय तो उसकी जागीर उसके पुत्र को ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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