Book Title: Rajvinod Mahakavyam
Author(s): Udayraj Mahakavi, Gopalnarayan Bahura
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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७, ४३] महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख [२५
अहम्मदपुराँतस्थः कूपो यस्य विराजते ।
जगज्जीवनदानेन यशोराशिमिवोद्वहन् ॥२०॥ य [] श्रीमन्महमू शाहकृपया श्रीचंपकाख्ये पुरे
--[को] तिविवर्द्धनं सुविपुलं तापत्रयोन्मूलनम् । सानंदेन चकार मानससमं ‘सत्पुष्करं' भूतले
सोयं वीर इभादलेंद्रनृपतिर्दुर्गं चकारोत्तमम् ॥२१॥ बागूलाधिपतिर्यस्य जयदेवो म - ट - [] · · · · · मिनिन्ये लूषजीवशिर [;] स्वयम् ॥२२॥ तत्राशेषा [त्रि] पून् हत्वा कृत्वा दिग्विजयोदयम् ।
रायदुर्ग समजयत् योसौ वीर इमादलः ॥२३॥ · · · · (रावल) वेधनेन सकलं तवैरिवन्दं त [था]
· · · · लि - विमुक्त गोलकगणैः संहत्य चूर्णीकृ [तम्] दुर्ग पू [f] बली विजित्य सबलं प्रोद्यत्प्रतापेन यो
धर्मद्व रमिदं प्रहारसहितं त - - पा - र्ददौ ॥२४॥ बागू [ल] भूप लबलं प्रह [त्य प्रच] ण्ड भूमी वरकालकर्ता । यः पावके पूर्ववि [३] द्ध भर्ता किं वर्ण्यते चास्य जयस्य वार्ता ॥२५॥
दधिपद्रे रुचिरतरं दुर्गा वै दुःसह · · · · । श्रीमदिमादलमुलको दान' · · · सुंदरश्चक्रे ॥२६॥
श्रीन विक्रमार्कसमयातीत संवत् १५४५४ वर्षे शाके १४०१०५ वर्षे प्रवर्तमाने वैशाख शुदि १३. • • • • • • • • ‘शुभे दिने मलिक श्रीइमादलमलिकि दुर्ग उद्धरे [श्रीरस्तु] जे गढ़ पोलि नी पारी ते वंतरी • • • • • • • • “तिस · · · · ।
(१) 'पुण्यं' (२) अर्थ स्पष्ट नहीं है । (३) तस्मै कृपाब्धिर्ददौ । (४) १५४ और ५ के बीच में एक बिन्दु सा दिखाई देता है । संभवतः पत्थर
की खरोंच है। (५) १४ औंर १० के बीच का बिन्दु अनावश्यक है ।
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