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महमूद बेगड़ा का दोहाद का शिलालेख नहीं बरता गया है वरन् उत्तरी भारत के दूसरे लेखों में भी ऐसा ही पाया जाता है । काठियाबाड़ में प्राप्त *इसी काल के शिलालेखों पर केवल विक्रम सम्वत् हो पाया जाता है।
लेख की लिपि देवनागरी है और इस विषय पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं है।
शिलालेख की भाषा संस्कृत है और आरम्भ में मङ्गलाचरण व अन्त में २६ वें पद्य के बाद के अंश के अतिरिक्त सम्पूर्ण लेख पद्य में है।
दुर्भाग्य से अन्त की तीन पंक्तियाँ बहुत ज्यादा घिस गई हैं और यह ठीक-ठीक पता लगाना सम्भव नहीं है कि यह लेख महमूद बैगड़ा के राज्यकाल में खुदवाया गया था मथवा उसकी स्वयं की आज्ञा से उसके कार्यों का इतिहास अंकित करने के लिये उत्कीर्ण किया गया था। इन पंक्तियों से जो कुछ आशय निकलता है वह इतना ही है कि यह लेख महमूद बेगडा के मुख्यमन्त्री इमादुल-मुल्क द्वारा दधिपद्र (दोहाद) के दुर्ग का निर्माण कराए जाने के बाद ही खुदवाया गया था। प्रसंगवश इसमें गुजरात के सुलतानों की वंशावली. उनके कार्यों और मख्यतः महमद के वीरकृत्यों का भी वर्णन आगया है। यह पहला ही शिलालेख है जिसमें महमूद बेगड़ा और उसके पूर्वजों के कार्यों का अर्थात् उनकी बनवाई हुई इमारतों व उनकी जीती हुई लड़ाइयों का विवरण दिया हुआ है।
____ * देखो भाण्डारकर, लिस्ट आफ़ इन्सक्रिप्शन्स आफ़ नार्दन इण्डिया (List of Inscriptions of Northen India,) सं० ७२३ और ११२१; ७३६ और ११२६; ७३७ और ११२७; ७४८ और ११२८; ७५७ और ११२६; ७७३ और ११३०: ८७३ और ११३६; ६०१ और ११३८; ६६७ और ११४६ ।
+ देखो रिवाइज्ड लिस्ट Revised List etc. पृ० २३६-२४६, २४८४६, २५१, २५४, २५७, २६३ ।
इससे पता चलता है कि संवत्सरों का प्रयोग करने की जो प्राचीन रूढ़ि काठियावाड़ में १३वीं शताब्दी के अन्त तक पाई जाती थी वह बाद में बन्द हो गई थी।
पा अब तक के प्रकाशित अन्य शिलालेख ये हैं:-अरबी लेख-रिवाइज्ड लिस्ट, एण्टी क्वेरियन रिमेन्स बाम्बे प्रेसीडेन्सी, पृ० ३०३, ३०६-०७; एक लेख एण्टी० रिपोर्ट A. S. I. १६२७,२८ पृ० १४६ में प्रकाशित हुआ है; कहते हैं कि इसमें गुजरात के उन सुलतानों के नाम दिए हैं जिनका दौहाद कस्बे को पूरा कराने से सम्बन्ध था । हालोल दरवाजा और चाँपानेर से प्राप्त दो लेख 'एपि० इन्डो-मोस्लि.' १६२६-३० पृ० ४ में प्रकाशित हुए हैं ।
संस्कृत लेख-अडालज 'रिवाइज्ड लिस्ट' पृ० ३१० बाई हरी का शिलालेख Inscription Rev. List पृ० ३०० ; इन्डियन एण्टी०, जिल्द ४, पृ० ३६८, जिल्द ४ पृ० २६८ ।
१५०० ई० तक के सभी लेखो में-चाहे वे मुसलमान शासकों के हों अगवा
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