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महमूद बेगड़ा का वंश-परिचय ग्रहण कर लेने को कहा गया परन्तु उन्होंने अस्वीकार कर दिया । इस पर सुलतान ने उनको मरवा दिया। भाट ने इस घटना का वर्णन इस प्रकार किया है :
संवत् पंदर प्रमाण, एकतालो संवत्सर; पोस मास तिथि त्रीज, बढ़ेहु वार रवि सुदन; मरशिया षट् प, प्रथम वेरसी पडीजे;
जाडेचो सारंग, करण,, जेतपाल कहीजे । सरवरियो चन्द्रभाण, पताह काज पिंडज दियो ।
महमुदाबाद मेहराण, लघु कटक सर पावो लियो । सन् १४९४ ई० में दक्षिण के बहमनी राज्य के विद्रोही बहादुर गिलानी नामक सरदार ने गुजरात के कुछ व्यापारिक जहाजों को लूट कर माहिम द्वीप पर अधिकार कर लिया। महमूद ने उसके विरुद्ध जल व स्थल सेनाएं भेजी और बहमनी के सुलतान के पास भी एक ऐलची द्वारा पत्र भेजा । उसने तुरंत शिलानी पर चढ़ाई करदी और उसे पकड़ कर मार डाला । गुजरात के मनुष्यों व वाहनों को मुक्त करके वापस भेज दिया गया।
दूसरे वर्ष महमूद ने बागड और ईडर पर चढ़ाई को और वहां के राजाओं से भारी भेट वसूल करके महमूदाबाद (चम्पानेर) लौटा । ___ सन् १५०७ ई० में महमूद फिर हमारे सामने जल-सेनापति के रूप में आता है। कुछ यूरोप निवासियों ने समुद्र पर अधिकार जमा रक्खा था और गुजरात के किनारे बस जाने की इच्छा से कुछ बन्दरगाहों पर कब्जा कर लिया था । तुर्को बादशाह बजाजत द्वितीय का जहाजी कप्तान पन्द्रहसौ आदमियों का बेड़ा लेकर गुजरात के किनारे आ पहुंचा । उधर महमूद व उसके अन्य सेनापति भी आ पहुंचे । इस लड़ाई में मुसलमानों को विजय हुई और पुर्तगालियों का झण्डेवाला जहाज, एडमिरल डॉन लारेजों अलमोड़ा व १४० मनुष्य नष्ट हुए। .
सन् १५१० ई० में महमूद पाटण गया। यह उसको अन्तिम यात्रा थी। उसने वहाँ के बड़े बड़े आदमियों को बुलाकर उनसे भेंट की। फिर वह अहमदाबाद लौट आया और तीन महीनों तक बीमार रहा । इसी बीच में उसने अपने पुत्र खलील खां को बुलवाया और उसकी अंतिम सलाम लेकर हिजरी सन् ६१७ (१५११ ई०) के रमजान महीने की तीसरी तारीख सोमवार को वह इस असार संसार को छोड़कर चल बसा । उसे सरखेज में दफनाया गया था जहां पर उसकी कब्र अब तक मौजूद है ।
(१) उस समय ईडर पर राव भान का पुत्र सूरजमल राज्य करता था।
(२) मीराते अहमदी । फरिश्ता ने लिखा है कि उसकी मृत्यु हि० स० ९१७ के रमज़ान महीने की दूसरी तारीख मंगलवार को हुई थी। उस समय उसकी आयु ७० वर्ष ११ महीने की थी। उसने ५५ वर्ष १ महीना और दो दिन राज्य किया ।
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