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महमूदवेगड़ा का वंश-परिचय 'गजरात के राजपूत सुलतानों का मूलपुरुष जिसने इस्लाम धर्म अंगीकार किया था "उसका नाम सहारन था। बाद में उसको उपाधि व उपनाम वजीर-उल-मुल्क हुमा । बह टॉक (तक्षक) जातीय सूर्यवंशी क्षत्रिय* था इसीलिए गुजरात के इतिहास में इसके बंशजों का 'राजपूत सुलतान' नाम से उल्लेख किया गया है।
भगवान श्री रामचन्द्र जी से कितनी ही पीढ़ियों बाद मुहुस हुआ। उसी के कुल में कम से बुलंभ, नाक्त, भूक्त, मंडन, भुलाहन, शीलाहन, त्रिलोक, कुंअर, वरसप, हरीमन, कुंअरपाल, हरीन्द्र , हरपाल, किन्द्र पाल, हरपाल और हरचन्द हुए । सहारन हत्वन का पुत्र था और थानेश्वर के पास एक गांव में रहता था। उसके छोटे भाई का माम साधु था। वे दोनों भाई जमींदारी का काम करते थे।
एक बार दिल्ली के बावशाह मुहम्मद तुगलक के काका का लड़का शाहजादा "कोरीवशाह शिकार को निकला और अपने साथियों से बिछुड़ कर सहारन के गांव के
पास जा पहुंचा । उस समय सहारन, उसका छोटा भाई साधु और दूसरे राजपूत एक "जगह बैठे हुए थे। एक राजपूत ने फीरोज के पैर में राजचिह्न पहचान लिया। सहारन *और साघु उसे अपने घर ले गए और उसका आगत-स्वागत किया। साधु को बहन ने उसे शराब पिलाई और उसी की लहर में फीरोज ने अपना परिचय दे दिया । साधु को बहन और फीरोज की शादी हो गई । तदनन्तर, वे दोनों भाई फीरोजशाह के साथ दिल्ली चले गये और इसलाम धर्म को ग्रहण कर लिया। बादशाह ने सहारन को वजीरउल-मुल्क का खिताब दिया । वजीर-उल-मुल्क के जफरखां और शमशेर खां नामक को लड़के हए । जफर खो ही आगे चल कर मुजफ्फर खान के नाम से इस वंश का गुजरात का प्रथम शासक हुआ।
बावशाह के कहने से सहारन और साधु ने कुतुब उल् आफ़ताब-हजरत मुखदुम महानिओं से इसलाम धर्म की दीक्षा ली थी। सहारन का पुत्र जफर खाँ भी इन्हीं महात्मा का शिष्य था। एक दिन हजरत के मठ पर कुछ फकीर इकट्ठे हुए । उस . समय महात्मा मुखदुम के पास खाने पीने का कुछ भी सामान नहीं था । जफर खां को यह बात मालूम थी। वह तुरन्त ही अपने घर से व बाजार से मिठाइयाँ आवि ले आया और सभी फकीरों को भोजन करा दिया। फकीरों ने तृप्त होकर जोर से 'अल्लाहो अकबर' का नारा लगाया। जब मुखदुम जहानिओं को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने जफर खां को बुलाकर.प्रसन्नता पूर्वक कहा 'जो तुमने फकीरों को भोजन कराकर तप्त किया है उसके बदले में मैं तुम्हें सम्पूर्ण गुजरात की हुकूमत प्रदान करता हूँ।' इस "प्रकार जफ़रलो को फकोर का वरदान प्राप्त हुआ।
*वंशस्सहस्रांशुभवो जगत्यां जागत्य॑सौ राजभिरचंनीयः । 'कर्णोपमो यत्र किलावतीर्ण: श्रीमान् साहि मुदप्फरेन्द्रः ॥१॥ राजविनोद-सर्ग २
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