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राजविनोद महाकाव्य राजधानी को लौट आया। उस समय वह धार के पूर्व शासक अलपलों को अपने साथ सेता आया था।
अलपखा एक वर्ष तक कैद में रहा। इसी बीच में उसी के एक उमराव मूसा खाने, जो मांडू का हाकिम था, मालवे के थोड़े से भाग पर अधिकार कर लिया । इस पर अलपखां ने अपने हाथ से एक अर्जी लिखकर मुजफ्फरशाह के पास भेजो कि मेरे एक अधीनस्थ उबराव ने मालवे के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया है। यदि आप मुझे इन 'बेड़ियों से मुक्त करके उपकार को कैद में डाल दें तो थोड़े ही समय में मालवे पर पुनः
अधिकार प्राप्त करके अपनी शेष आयु आपके गुलाम की तरह बिताऊँगा। सुलतान ने उसपर कृपा करके मुक्त ही नहीं कर दिया धरन् अपने पुत्र अहमदलों को लश्कर देकर सहायता के लिए उसके साथ भी भेजा। मूसाखों में सामना करने की शक्ति कहाँ थी? वह भाग गया और शाहजादा अलपखां को गद्दी पर बिठा कर वापस आया।
मुजफ्फरशाह न हिजरी सन् ८१२ (ई० १४०६) में कुम्भकोट के हिन्दुओं क विरुख खुदावन्द खां को सरदारी में फौज भेजी जो विजयी होकर वापस आई।
मुजफ्फरशाह को मृत्यु के विषय में तवारीख बहादुरशाही में इतना ही लिखा है कि सुलतान की मृत्यु हि० स०८१३ (ई० स० १४१०) में हुई। कुछ जानकार लोग इस वृत्तान्त के विषय में इस प्रकार कहते हैं कि आशावल कसबे के कोलियों ने सुल्तान की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और घाट बाट पर लूट पाट करने लगे । मुखपफर. शाह न एक हजार सिपाही साथ देकर अहमदखां को उन्हें दबाने के लिए भेजा। अहमदलों ने शहर से बाहर निकल कर विद्वानों को बुलाया और उनसे प्रश्न किया कि 'एक शख्श किसी दूसरे शख्श के बाप को बिना कुसूर मार डाले तो उससे बाप के मारने का बदला लेना धर्मानुकूल है या नहीं ?" सभी विद्वानों ने कहा "बदला लेना ठीक है।" विद्वानों को यह सम्मति एक कागज पर लिखाकर अहमदखां ने अपने 'पास रक्खी। दूसरे दिन वह अपने सवारों सहित शहर में दाखिल हुआ और सुलतान को क्रद करके मार डाला। सुलतान ने मरते समय अहमदखां को कुछ शिक्षाएं थीं, जो इस प्रकार है :___ "पुत्र ! तुमने इतनी जल्दी क्यों की ? कुरान में लिखा है कि मृत्यु तो अन्त में आवेगी ही-एक घड़ी पहले या पीछे । मेरी इन शिक्षाओं पर ध्यान रखना । इमसे तुझे लाभ होगा।
जिन लोगों ने तुझे यह काम करने के लिए उकसाया हं उनसे दोस्ती मत रखना वरन् उनको मार डालना क्योंकि दगाबाज का खून हलाल (उचित)-हं ।
शराब पीने का शौक बिलकुल मत करना क्योंकि शराब के प्याले में दुःख के समुद्र का तूफान रहता है।
(१) मुमोच बन्दीकृतमल्पखानमनल्पवीयं बलवत्तरो यः । "वश्यास्ततो मालवराजबन्दिमोक्षपदाख्यं विरुदं वहन्ति ॥४॥ रा० वि० सर्ग २॥
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