Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 11
________________ माना जाता था और जिस पशु के छोटे-छोटे बालक हों, वह भी वध योग्य नहीं माना जाता था। जो शिकारी इन नियमों की अवहेलना करता वह दोषी गिना जाता था और उनका मुखिया उनको उपालंभ भी देता था। सभी पारधी परिवार एकत्रित होकर एक पारधी को अपना मुखिया मान लेते और वह मुखिया व्यवस्था का संचालन करता और सभी नियमों की परिपालना में सचेष्ट रहता। जब कभी परस्पर विवाद या संघर्ष हो जाता तो वह मुखिया तथा अन्य निश्चित पांच वृद्ध पारिधियों की मंडली जो निर्णय देती, वह सबके लिए मान्य होता था। पारधी जाति में छोटे-बड़े अनेक उत्सव मनाए जाते थे। पारधी लोग अक्षरज्ञान से मुक्त थे, परन्तु सूर्य, चन्द्र, ग्रह, ऋतु आदि के आधार पर सब कुछ जान लेते थे। फाल्गुन और आश्विन की पूर्णिमा ये दो दिन उनके लिए परम आनन्दप्रद और रसदायी होते थे। इनमें भी शरद् पूर्णिमा की रात्रि इनके लिए दीपावली के समान होती थी। आज यही आश्विन पूर्णिमा है। शरद् ऋतु की यह त्रियामा उनके लिए शतयामा बन रही है। आज का चांद अमृत की वर्षा कर पृथ्वी को नवचेतना प्रदान कर रहा है। पारधी युवक, युवतियां, वृद्ध और बालक-सभी आज एक मैदान में एकत्रित हुए हैं। कुछेक मदिरा की मस्ती में डोल रहे हैं और कुछेक वेणुवीणा आदि वाद्य बजाकर आनन्दविभोर हो रहे हैं। कोई सामूहिक नृत्य में लीन है तो कुछेक युवतियों के समूह धरती को प्रकंपित करती हुई रास-नृत्य में मशगूल हैं। उनके चर्मवाद्य और तंतुवाद्य गीतों के साथ तालयुक्त लय में स्वरलहरियों को बिखेर कर चन्द्रमा का अभिनन्दन कर रहे हैं। गान, तान, आनन्द, मौजमस्ती और नृत्य के कारण सारा वनप्रदेश झंकृत हो उठा है और यह पल्ली मानो गांधर्व नगर की भांति शोभित होने लगा। जब चांद आकाश के मध्य आया तब पारधी के मुखिया ने श्रृंग वाद्य को बजाया। उसकी आवाज चारों दिशाओं में फैल गई और तब सारे रास-नृत्य बंद हो गए और सभी मुखिया पारधी की ओर आने लगे। कुछ ही समय में सभी स्त्री-पुरुष, बालक और वृद्ध उस मैदान में आ पहुंचे जहां मुखिया पारधी तथा कुछेक वृद्ध व्यक्ति खाटों पर बैठे थे। मुखिया पारधी गंभीर होकर हर्षभरे शब्दों में बोला-'भाइयो! अपने रीतिरिवाज के अनुसार प्रतिस्पर्धा का समय हो गया है। सभी आकाश की ओर देखें। चांद भगवान गगन के मध्य आ गए हैं। आज की इस प्रतिस्पर्धा में मेरी पुत्री वासरी खड़ी हो रही है। जो युवक भाग्यशाली होगा, वह इसे प्राप्त कर सकेगा, उसे घरवाली बना सकेगा।' पूर्वभव का अनुराग / ९

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