Book Title: Priy Shikshaye
Author(s): Mahendrasagar
Publisher: Padmasagarsuri Charitable Trust

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पूर्वकथन गाँव के बीच लगा लेम्प घोर अन्धकार को आने से रोकता है, वैसे ये शिक्षाएँ भी गुणप्रकाश देकर जीवन के अन्धकार को दूर करेंगी। ये शिक्षाएँ मधुमक्षिका के समान हैं जिनमें डंक भी है तो शहद भी हैं एवं शरीर से छोटी भी है। दिखने में छोटी भले ही हो मगर जिन्दगी में बड़े काम की है। आबाल वृद्धजन अपनी मानसिकता के अनुरूप उनका रसास्वादन कर सकेंगे। इनमें कितनीक शिक्षाएँ धर्मश्रद्धा को बढ़ाने वाली है। कितनीक शिक्षाएँ अंतरंगसत्व को बढ़ाने वाली है। कितनीक शिक्षाएँ जीवन के पाप घटाने वाली है। अतः हर दिन एक शिक्षा को चबा-चबा कर पढ़ा जायेगा तो जीवन की सुबह प्रकाशित हो जायेगी। इस किताब को केवल ऊपर-ऊपर से पढ़ लेने से कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा और पल्ले पड़े बिना उसका अंशमात्र भी अनुसरण नहीं हो सकेगा। अगर ये शिक्षाएँ भली-भाँति हृदयंगम हो जाय तो, आत्मोत्थान में रामबाण औषधि के समान अचूक सिद्ध हो सकती है। इन शिक्षाओं को पढ़ कर मेरे और आपके जीवन में सुगन्ध बिखरे ऐसी कामना के साथ....... महेन्द्र सागर 13/1/05 For Private And Personal Use Only

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