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देव तू ही, महादेव तू ही
ससार में प्रत्येक वस्तु का प्रतिपक्ष अवश्य है। देखो----अमृत का प्रति पक्षी विप है, धूप की प्रतिपक्षी छाया है, लाभ की प्रतिपक्षी हानि है, यश का प्रतिपक्षी अपयश है और सम्पन्नता की प्रतिपक्षी दरिद्रता है । इसी प्रकार अन्य वस्तुओं के भी प्रतिपक्षी जानना चाहिए। इन प्रतिपक्षियों की संसार में सर्वत्र घुड-दौड़ चल रही है । कभी यदि एक का वेग बढ़ता है तो कभी दूसरे का वेग बढ़ता है। जब जिसका वेग जोरदार होता है, तब वह अपने प्रतिपक्षी को दवा देता है ! यदि अन्धड़ आकाशा में अधिक छा जाता है, तो तावड़ा कम हो जाता है। यदि पुण्यवानी का उदय प्रवल होता है तो दरिद्रता घट जाती है और यदि पाप का तीन उदय होता हे तो दरिद्रता आ घेरती हैं। इसलिए कवि कहता है कि
रवि उगते कुमति-घटा चिलायी सुमति आई । अर्थात्-सूर्य का उदय होते ही अन्धकार का नाश हो जाता है ! यहा तक कि जहां पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती है, ऐसे तल घर गुफा आदि में भी इतना प्रकाश पहुंच ही जाता है, कि वहा पर रहने वाले मनुष्य को भी सूर्य के उदय का आभास हो ही जाता है। और भी कहा है
तारो की ज्योति से चांद छिये नहि, सूर्य छिपे नहि बादल छाया, जंग जुरे रजपूत छिपे नहि, दाता छिपे नहि मांग न आया । चंचल नारि के नन छिपे नहीं, नीच छिपे नहीं ऊँच पद आया, जोगी के भेष अनेक करें, पर कर्म छिपे न भभूति लगाया ।।