Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 2 Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust DelhiPage 14
________________ विषय परिचय आचार्य श्री प्रभाचन्द्र विरचित प्रमेयकमलमार्तण्ड के राष्ट्रभाषानुवाद का यह द्वितीय भाग पाठकों के हाथ में है। मूल संस्कृत ग्रन्थ बारह हजार श्लोक प्रमाण सुविस्तृत है अतः इसको तीन भागों में विभक्त किया, प्रथम भाग सन् १९७८ में प्रकाशित हो चुका था, द्वितीय यह है और तृतीय भाग आगे प्रकाशित होगा, तीनों में समान समान रूप से ही ( चार चार हजार श्लोक प्रमाण ) संस्कृत टीका समाविष्ट हुई है। श्री माणिक्यनंदी आचार्य विरचित परीक्षामुख नामा सूत्र ग्रन्थ की टीका स्वरूप यह प्रमेयकमलमार्तण्ड है, परीक्षामुख के कुल सूत्र २१२ हैं ( प्रत्यभिज्ञान के उदाहरणों के एक सूत्र में समाविष्ट करके एवं तर्क के उदाहरण सूत्र को एकत्र करके २०८ संख्या गिनने की परिपाटी भी है ) इनमें से प्रथम भाग में १८ सूत्र समाविष्ट थे, इस द्वितीयभाग में १०८ सूत्र हैं, शेष सूत्र तृतीय भाग में रहेंगे। जीवादि पदार्थ या घट पट अादि यावन्मात्र विश्व के चेतन अचेतन पदार्थों को 'प्रमेय' कहते हैं उन प्रमेय रूपी कमलों के लिये मार्तण्ड अर्थात् सूर्य कौन हो सकता है तो वह प्रमाण ही हो सकता है, हमारे इस ग्रन्थ में प्रमाण का ही मुख्यवृत्या प्रतिपादन है अतः इसका सार्थक नाम “प्रमेयकमलमार्तण्ड' है । प्रमेयों को जानने वाले प्रमाण के विषय में दार्शनिक जगत में विवाद है, नैयायिक कारक साकल्य को (पदार्थ को जानने की बाह्य सामग्री को) और वैशेषिक इन्द्रिय और पदार्थ आदि के सन्निकर्ष को प्रमाण मानते हैं, ऐसे ही बौद्ध ग्रादि परवादियों के विविध प्राग्रह हैं, जैन ज्ञान को ही प्रमाण मानते हैं क्योंकि पदार्थ को जानने के लिये अज्ञान का विरोधी ज्ञान ही हो सकता है, अज्ञान स्वरूप घटादि को अज्ञान रूप ही सामग्री किस प्रकार उपयुक्त हो सकती है ? क्या अप्रकाश स्वरूप वस्तु को अप्रकाश रूप पदार्थ प्रकाशित कर सकता है ? नहीं कर सकता, अर्थात् घट आदि अप्रकाश रूप पदार्थ को प्रकाशित करने के लिये प्रकाश स्वभाव वाले प्रदीप आदि ही समर्थ हो सकते हैं उसी तरह घटादि को जानने के लिये ज्ञान स्वभाववाला प्रमाण ही समर्थ हो सकता है। इसका विस्तृत विवेचन प्रथम भाग में हो चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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