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रहता है । कितने ही जैन कुटुम्ब भी ऐसे है जिनके पूर्वजो मे साहित्यिक अभिरुचि रखने वाले विद्वान होते रहे है और उक्त विद्वानो द्वारा सग्रहीत लिखित अथवा रचित कितने ही ग्रथ बपौती के रूप मे चले आये उनके वशजो के पास आज भी सुरक्षित है, और जिनका सदुपयोग वे लोग चाहे भले ही न कर सके, किन्तु किसी अन्य को देना क्या कभी भी दिखाने मे भी सकोच करते है । इस प्रकार के असख्य फुटकर जैन शास्त्र भडारो का कोई व्यवस्थित या अव्यवस्थित भी अन्वेषण अभी तक हुआ ही नही और उनमे एक अकस्मात् दर्शक को बहुधा कितनी ही महत्वपूर्ण एव अलम्य साहित्यिक सामग्री का दर्शन हो जाता है । अभी हाल मे ही काशी नागरी प्रचारणी सभा के अन्वे षक श्री दौलतराम जुआल के प्रसग मे लखनऊ के केवल एक ही दिगम्बर जैन मन्दिर के शास्त्र भडार के कुछ मात्र हिन्दी हस्तलिखित ग्रंथो का निरीक्षण करने का सुयोग मिला था । परिणाम स्वरूप कई एक अधुना अज्ञात हिन्दी के प्राचीन जैन साहित्यकारो और उनकी कृतियो का पता चला तथा कई एक अन्य ज्ञात प्राचीन साहित्यिको के ऐतिह्य पर महत्त्वपूर्ण नवीन प्रकाश
पडा ।
ग्रन्थ पूची - जैन ग्रंथो की वृटिप्पणिका' नामक एक प्राचीन ग्रंथसूची पहिले से ही विद्यमान थी और आधुनिक युग मे भी कई स्वतन्त्र ग्रथसूचिये प्रकाशित हो चुकी है। जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स ने 'जैन ग्रंथ नामावली' नामक एक सूची प्रकाशित की थी और पाटन, जैमत्मेर, सूरत, ग्रहमदाबाद, fast आदि स्थानो के श्वेताम्बर ग्रथ भडारो की व्यवस्थित सूचिये प्रकाशित हो चुकी है। दिगम्बर सूचियो मे सर्व प्रथम ग्रंथ सूची जयपुर निवासी बाबा दुलीचन्द श्रावक के अपने मन्दिर मे स्थित शास्त्र भडार की थी। जिसे उन्होने 'जैन शास्त्र माला' के नाम से सन् १८६५ ई० मे प्रकाशित किया था । सन् १६०१ मे लाहौर निवासी बा० ज्ञान चन्द्र जैनी ने 'दिगम्बर जैन भाषा ग्रथ नामावली' नाम से एक अन्य सूची प्रकाशित की। सन् १९०५ मे फ्रान्सीसी विद्वान डाक्टर ए० गिरनोट ने अपनी 'जैना बिबलियोग्रेफिका' (फ्रान्सीसी भाषा मे लिखित ) मे ज्ञात बहुमख्यक जैन ग्रंथो की सूची दी । ऐलक