Book Title: Prakashit Jain Sahitya
Author(s): Pannalal Jain, Jyoti Prasad Jain
Publisher: Jain Mitra Mandal

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Page 12
________________ दशा सुधारने मे प्रस्तुत पुस्तक वहुत उपयोगी सिद्ध होगी, इसमे सन्देह नही । श्रीयुत पन्नालाल जैन अग्रवाल जैन साहित्य की बहुत कुछ सेवा कर चुके हैं और उन्हें जैन साहित्य प्रकाशन का खासा परिचय है । प्रस्तुत पुस्तक में उन्होंने जैन साहित्य की प्रकाशित हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत और अपभ्रंश आदि भाषा की रचनाओ की प्रकारादि क्रम से सक्षिप्त सूची प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है । इसके आधार से साहित्यक विद्वान जैन प्रकाशन की गति-विधि का पता लगा सकेंगे । जिन्हे ग्रंथ-सग्रह करना है वे इसके द्वारा अपने पुस्तकालय को पूर्णता की ओर अग्रसर कर सकते हैं । और जिन्हें यह समझना है कि अभी भी कितना साहित्य प्रकाशित होना शेष है, वे इस सूची मे उल्लिखित आधुनिक रचनामो के अतिरिक्त प्राचीन सस्कृत की केवल १८०, प्राकृत की ४४, अपभ्रंश की १८ और प्राचीन हिन्दी की २७५ पुस्तकों को डा० वेलणकर कृत 'जैन रत्न कोश' तथा विविध जैन भडारो की नई सूचियो प्रादि से मिलान कर देखे, तो उन्हें पता चलेगा कि अभी भी सैकडो नही महस्रो प्राचीन जैन रचनाये अधेरे मे पड़ी हुई हैं। इस सूची की भूमिका रूप जो 'जैनियों की साहित्य सेवा और प्रकाशित जैन साहित्य" शीर्षक निबन्ध सम्पादक द्वारा प्रस्तुत है वह अपने विषयगत बहुत महत्वपूर्ण मामग्री को लिए हुए है। ___ मैं इस ग्रथ का हृदय से स्वागत करता हू और उसके सयोजक, सम्पादक तथा प्रकाशक और साथ ही वीर सेवा मन्दिर को, जिसके तत्वावधान मे सम्पादन का मब कार्य सम्पन्न हुआ है , विशेष धन्यवाद देता हुमा यह आशा करता है कि इसके द्वारा भविष्य मे जैन साहित्य के प्रकाशन और प्रसार का मार्ग अधिक प्रशस्त बनेमा। १४-२-१९५८ होरालाल जैन मुजफ्फरपुर डायरेक्टर 'माकृत जैन विद्यापीठ

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