Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Haribhadrasuri, Shyamacharya
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust

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Page 11
________________ औदारिकादिशरीरखरूपम् ॥ प्रज्ञापनो पाङ्गम् | १२ शरीर आयामओ सत्त रज्जू बाहल्लओ रज्जुए असंखभागेण अहियामो छ रज्जुओ, एवं सबलोगो ववहारेण सत्तरज्जुघणो जाओ, ऊणाइरित्तं जाणिऊण ततो बुद्धीए संघाएज्जा, जत्थ जत्थ सेढीगहणं तत्थ तत्थ एयाए सत्तरज्जुआययाए अवगंतब्वं, पयरस्सवि एयस्स चेव सत्तरज्जुयस्स चेव अणेण लोगेण खेत्तप्पमाणं, एवमेतेण सरीरप्पमाणेणं वेउम्बियाई बद्धेल्लयाई असंखिजसेदिप्पदेसरासिप्पमाणमित्ताई, मुक्काई जहा ओरालियाई, आहारगे-बद्धाई सिय अस्थि सिय नत्थि, किं कारणं? जेण तस्स अंतरं जहण्णेणं एवं समयं उकोसेणं छम्मासा, तेण ण होतिवि कयाइ, यदि होंति जहण्णेण एक्को व दो व तिण्णि व उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्तं, दाहि-|* तो आढत्तं पुहत्तसण्णा जाव णव, मुक्काई, जहोरालियाई मुक्काई तेया बद्धा अणंता अर्णताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं कालपरिसंख्याण, खेत्तओ अणंता लोया, दब्बओ सिद्धेहितो अणंतगुणा सव्वजीवाणंतभागूणा, किं कारणमणंताई ? तस्सामीण अणंतत्तणओ, आह-ओरालियाणंपि सामिणो अणंता,आयरिय आह-ओरालियसरीरमणंताणं पगं भवति साधारणतणओ, तेयाकम्माई पुण पत्तेयं | पत्तेयं सव्वसरीरिणं, तेयाकम्माई पडुच पत्तेयं चेष सम्बजीवा सरीरिणो, ताई च सव्वसंसारिणंतिकाउं, संसारी(रिणो) सिद्धेहिंतो अणंतगुणा होंति, सब्बजीवा अणंतभागूणा, के पुण!, ते चेव संसारी सिद्धेहिं ऊणा, सिद्धा जीवाणं अणंतभागो, तेण ऊणा अणंतभागूणा भवंति, मुक्काई अणंताई अर्णताहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहि कालपरिसंखाणं, खेत्तओ अणंता लोगा, दोवि पूर्ववत्, 'दब्बतो सब्वजीवेहिं अणंतगुणा जीवबग्गस्स अणंतभागो', कह सबजीवाणंतगुणा ? जाई तेयाकम्माई मुक्काई ताई तहेवाणंतमेदभिनाई असंखिज्जकालवत्थाइयाणि जीवेहितो अणंतगुणाई भवति, केण पुण अणंतएण गुणाई?, तं चेव जीवाणं तपण गुणितं जीववग्गो भषणति, एत्तियाई होजा?, आयरिय आह-एत्तियं न पावति, किं कारणं?, असंखिज्जकालावत्थायित्तणओ तेसिं दवाणं, तो कित्तियाई पुण होजा?, जीवबग्गस्स अणंतभागो, कहं पुण एतदेवं चित्तब्वं?, आयरिय आह-ठवणारासीहिं णिदरिसणं कीरति, सब्वजीवा दस सहस्साई धिप्पंति, तेसिं वग्गो दस कोडीओ होंति, सरीरयाई पुण दससयसहस्साई बुद्धीए अवधारिज्जंति, एवं किं जातं ?, सरीराइं जीवेहिंतो सतगुणाई जाताई.जीववग्गस्स दस (सततम) भागे संवुत्ताई, णिरिसणमेयं, ॥५॥

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