Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Haribhadrasuri, Shyamacharya
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust
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श्री
प्रज्ञापनोपाङ्गम्
स्वरूपम् ॥
१२ शरीर
दुविहाइपि सट्टाणवेउब्वियसरिसाति, सेसाणं वणस्सतिबजाणं सटाणोरालियसरिसाइं इदाणी जं जस्स न भणियं तं भणिहामि-असुरवेउब्विया बबेल्लया असंखिज्जातो सेढीभो पयरस्स असंखिज्जइभागो, तासिणं सेढीणं विक्खंभसूती य पदमबग्ग-|| मूलस्स संखिजइभागा, तस्स अंगुलविक्खंभखेत्तवत्तिणो सेढिरासिस्स जं पढमं वग्गमूलं, तत्थ जाओ सेढीओ तासिं संखिज्जइ-II
औदारिभागो, पर्व नेरइएहितो असंखेजगुणहीणा विक्खभसूती भवति, जम्हा महादंडएवि असंखिजगुणहीणा सब्वे चेव भवणवासी रयण-|
कादिशरीर| प्पभापुढविनेरइपहिंतोवि, किमुत सब्वेहितो, एवं जाव थणियकुमाराणं, पुढविआऊतेऊसु (वेउब्ब) उववज कंट्ठा भाणियब्बा, वाउकाइयाणं बेउब्विया बदल्लया असंखिजा, समए समए अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखिज्जइभागमित्तेणं कालेणं अवहीरंति, णो चेव णं अवहीयाई सिता, सूत्र, कहं पुण पलिओवमस्स असंखिज्जाभागसमयमित्ता भवंति?, आयरियाह-वाउकाइया चउविहा सुहुमा पजत्ता अपज्जत्ता, बाइरावि पजत्ता अपज्जत्तावि, तत्थ तिण्णि रासी पत्तेयमसंखिजलोगपदेसरासिमित्ता, जे पुण बादरा पजत्ता ते परं पयरासंखिजहभागमित्ता, तत्थ ताव तिण्हं रासीणं वेउब्वियलद्धी चेव नत्थि, बादरपज्जत्ताणंपि संखिज्जहभागमित्ताणं लद्धी अस्थि, ततो पलिओमामसंखिज्जभागो चेव, ते पवन्नाई?, तं न जुज्जति, (किं) कारणं, जेण सब्वेसु च लोकाकाशादिषु वलयादिषु वायवो विज्जंति, तम्हा अविउब्वियावि तं घेत्तव्यं, सहावो तेसिं वातियब्वं, वाताद्वायुरितिकृत्वा, बेइंदियोरालिया बद्धेल्लया असंखिजा असंखिजाहिं ओसप्पिणिउस्सप्पिणीहिं कालपरिमाणं, तहेव खित्तओ असंखिजाओ सेढीओ तहेव पतरस्स असंखिजइभागो, केवलं विक्खंभसूतीए विसेसो, विक्खंभसूती असंखिज्जाओ जोयणकोडाकोडीओत्ति विसेसियतरं परिसंखाणं, महवा इममण्णं विसेसियतरं असंखिज्जाई सेढीवग्गमूलाई, किं भणियं होति !, एकाए सेढीए जो पदेसरासी तस्स पढम वग्गमूलं बितियं ततियं जाव असंखिज्जाई वग्गमूलाई जो पदेसरासी भवति तप्पमाणा विक्खंभसई बेईदियाणं, निदरिसण-पट्टि सहस्साई पंच य सयाई छत्तीसाई पदेसाणं, तीसे पदमवग्गमूलं बे सता छप्पणा, वितियं सोलस्स, ततियं चत्तारि, चउत्थं दोण्णि, एवमेताई बग्गमूलाई संकलियाई
॥७॥

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