Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Haribhadrasuri, Shyamacharya
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust

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Page 16
________________ औदारिकादिशरीरखरूपम् ॥ श्रीप्रज्ञापनों पाङ्गम् १२ शरीर० ७३७०९५५१६१६, एस छट्टो वग्गो, पयस्स गाहाओ, तंजहा-“लक्खं कोडाकोडी चउरासीई भवे सहस्साई । चत्तारि सत्तट्ठा हॉति सया कोडिकोडीणं ॥१॥ चोयालीसलक्खाई कोडीणं सत्त चेव य सहस्साई। तिष्णि सया सत्तयरी कोडीणं होंति नायब्वा ॥२॥ पंचाणउती लक्खा एकावणं भवे सहस्साई। छसोलसुत्तरसया य पत्थ छट्ठो हवति वग्गो॥३॥ पत्थ य पंचमछटेहिं पओयणं, एस छट्ठो बग्गो पंचमेण वग्गेण पडुप्पाइजति, पडुप्पाइए समाणे जं होति पवइया जहण्णपतिया मणुस्सा हवंति, ते य इमे पवइया-७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६, एवमेताई अउणतीसं ठाणाई, एवइया जहण्णपइया मणुस्सा, छ| | तिण्णि२ सुपणं पंचेव य नव य तिणि चत्तारि। पंचेच तिणि णव पंच सत्त तिण्णेव तिण्णेव ॥१॥ चउ छ हो चउ पको पंच दु छक्केवगो य अटेव। दो दो नव सत्तेव य ठाणाई उवरि हुंताई ॥२॥ अहवा इमो पढमक्खरसंगहो ति 'छत्ति त्ति सुपण तिच पति ण प स ति ति च छ दु च प प दुच्छ ए अबे बिण स पढमक्खरसन्नि(संग) या ठाणा ॥१॥' पते पुण निरमिलप्पा कोडिहिं वा कोडाकोडीहिं चत्तिकाउं तेण पुव्व पुवंगेहिं परिसंखाणं कीरति, चउरासीइ सयसहस्साइ पुवंग भण्णति, पयं पवतिएण चेव गुणियं पुर्व भण्णति, तं च इम-सत्तर कोडिसतसहस्साई छप्पण्णं च कोडिसहस्साई, पतेण भागो हीरति, ततो इदमागतं फलं भवति-पकारस पुव्वकोडाकोडीओ बावीसं च पुश्वकोडिसतसहस्साइ चउरासीदं च पुवकोडीसहस्साइ अट्ठ दसुत्तरा पुवकोडिसता एक्कासीतिं च पुव्वसयसहस्साई पंचाणउतिं च पुव्वसहस्साईत्ति, तिणि य छप्पणो पुब्बसया,पतं भागलन्धं भवति, तओ पुब्वेहिं भागं ण पयच्छति, पुबंगेहिं भागो हीरति, ततो इदमागतफलं भवति-पकवीसं पुव्यंगसतसहस्साई सत्तरि पुवंगसहस्साई छच्च पगूणसट्ठाई पुव्बंगसयाई, ततो इदण्णं वेगलं भवति-तेसीतिमणुस्ससतसहस्साई पण्णासं च मणुयसहस्साई तिषिण य छत्तीसा मणुस्ससता, एसा जहण्णपदियाणं मणुस्साणं सखा, एतेसिं गाहाओ-मणुयाण जहण्णपदे एक्कारस पुब्बकोडिकोडिओ। बावीस कोडिलक्खा कोडिसहस्सा य चुलसीई ॥ १॥ अट्टेव य कोडिसया पुष्वाण दसुत्तरा तो होंति । पक्कासीति लक्खा पंचाणउती-सहस्सा य ॥ २॥ छप्पण्णा तिण्णि सया पुब्वाणं पुव्ववणिया अण्णे । एत्तो पुब्बंगाई इमाई अहियाई ॥१०॥

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